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अनेकान्त
वर्ष १, किरण ६.७ कार्तिकी पौर्णमासीके बाद नीस दिन तक-तीसवें दिन की समाप्ति तक है। और कमती दिनों वाले चौमासे
___ महावीरके वस्त्र-त्याग-विषयमें का हीन काल अपाढी पर्णमामीके बाद श्रावणकी प्रतिपदाम बीम दिनके भीतर किमी वक्त प्रारंभ होता है ।
श्वेताम्बरीय मान्यताएँ
श्वेताम्बर सम्प्रदायमें आम तौर पर यह मान्यता ४ अधिक दिनकं चौमासके कारण ये है-१
पाई जाती है कि भगवान महावीरके आभूषणादिक वर्षाकी अधिकता, : श्रुतग्रहण (किमी खास शास्त्र के
को त्याग कर दीक्षा लेनेके समय इन्द्र ने 'देवदृष्य' अध्ययनकी ममानि आदि का इष्ट होना ), ३ शक्तिका
नामका एक बहुमूल्य वन उनके कन्धे पर डाल दिया अभाव (गंग आदि के कारण उस समय गमन की
तरह महीने तक धारण किये रहे । इसके शक्ति न होना ) और '४ वैयावृत्यकरगण (दूसरे बीमार
बाद उन्होंने उसे भी त्याग दिया और तबमे वे पूर्णरूप भाधकी मेवाके लिये रुक जाना )। कमती दिन वाले
मं नग्न दिगम्बर अथवा जिनकल्पी ही रहे । हेमचंद्राचौमाम के कारण यद्यपि स्पष्टरूपम बनलाये नहीं गये
चार्यक ‘महावीरचरित' आदि कुछ श्वेताम्बरीय ग्रंथा परन्तु प्रकागन्तग्म ये ही जान पड़ते हैं । इन कारणों
पर में मुझे भी अभी तक इसी एक मान्यताका परिमें उस स्थान पर पहुँचने में कुछ विलम्बका होना मिलता रहा। परन्तु हाल में भगवती आराधना मंभव है जहाँ चौमामा करना इष्ट हो।
की उक्त अपगजितमरि-विरचित 'विजयादया' नाम . चातुमाम का नियम प्रहण करने के बाद कुछ' की टीका को देखने मालूम होता है कि श्वेताम्बर कारणों में माधु अन्यत्र भी जा सकते हैं अथवा उन्हें सम्प्रदायमें इस मान्यताम भिन्न कुछ दूसरी प्रकारकी
य की रा के लिये जाना चाहिगे । वे कारण मान्यताएँ भी प्रचलित रही हैं । इम टीकामें, 'आचे. - गग पड़गा, . दुर्भिक्ष फैलना, ३ प्राम या लक्य' नामक श्रमग्ण-स्थिनि-कल्प की व्याख्या करत •गर का चलायमान होना ( भकम्प, राष्ट्रभंग या हए, जैन साधओंके लिये अचेलना (वस्त्ररहिनता) का गजकांपादि कारणों से जनताका नगर-प्रामको छोड़ विधान करने और उसकी उपयोगिताको दिग्वलाने पर छाड़ कर भागना ) अथवा ४ अपने गच्छ के नाश का श्वेताम्बर सम्प्रदाय की ओरसे किये जाने वाले कुछ कोई निमित्त उपस्थित होना । और इसलिय चातुर्मास प्रश्नोंका उल्लेख किया है और फिर उनका उत्तर दिया का नियम लेते समय माधको यह स्पष्ट रूपमे संकल्प है। प्रश्नों में भागमादि पुगतन ग्रन्थोंके वस्त्रादिकके कर लेना उचित्त मालूम होता है कि यदि ऐसा कोई उल्लव वाले कुछ वाक्यों को उद्धृत करके पूछा गया है प्रतिबन्ध नहीं होगा तो मैं इतने दिनोंतक यहाँ निवाम कि, तब इन सूत्रवाक्यों की उपपत्ति कैसे बनेगी ? करूँगा। हिन्दुओंके यहाँ भी 'भसति प्रतिवन्धे तु इन्हीं प्रश्नोंमें एक प्रश्न 'भावना नामक किसी श्वेशब्दों के द्वारा संकल्प में ऐसा ही विधान पाया जाता ताम्बरीय प्रन्थकं एक वाक्यसे सम्बंध रखता है, जिस है । जैसा कि 'अत्रि' ऋषिके ऊपर उद्धृत किये हुए में भ० महावीर के साल भर तक वस्त्र धारण करने वाक्यस प्रकट है।
और तत्पश्चात उमके त्याग करनेका उल्लेख है। इस