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के निमित्त ही मगधपति कोशिक के साथ लड़ाई लड़ी थी और अन्त तक अपनी टेक रखते हुए उसने अपना वीरोचित समाधिमरण किया था, इस दशा में चेटक की कीर्ति और उसका महत्व उसके पुत्र शोभनराज की संतान के लिये एक गौरव का विषय हो इसमें क्या अनुचित है ? शोभनराज भाग निकला और उस ने अपनी हीनता साबित की यह मान लेने पर भी चेटक की महत्ता में कुछ भी हीनत्व नहीं आता । अगर ग्यारवेल सचमुच ही इस कीर्तिशाली चेटकका वंशज हा तो वह बड़े गौरव के साथ अपने पर्वजका नाम ले मकता है।
अनेकान्त
इस कथन में भी कुछ प्रमाण नहीं है कि चेटक 'वि' वंशक | पुरुष था । मुझे ठीक स्मरण तो नहीं हैं पर जहाँ तक खयाल है, श्वेताम्बर सम्प्रदाय के पुराने साहित्य में चेटक का " हैहय" अथवा इस से मिलता जुलना कोई वंश बताया गया है । पर 'लिच्छिवि' वंश तो किसी जगह नहीं लिखा । हाँ उस के समय में वहां 'लिच्छिवि' लोगों की एक शक्तिशाली जाति थी, उसके कई जत्थं थे और प्रत्येक जत्थे पर एक
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१. जत्थेदार - गणनायक - नियत था । पर इसका अर्थ यह नहीं है कि वे जत्थेदार अथवा गणनायक बिलकुल स्वतंत्र थे । सिर्फ अपने गणों के आन्तरिक *यों में ही उनका स्वतंत्रता परिमित थी। राज्य कारोबार में से सब चेटक के मातहत थे, दुदवयोग मे गिल के साथ की आगि नड़ाई के समय विदेद्द की 'वि' और 'जी' नामक दा प्रबल जातियां
दूसरी जाति ने चेटक को धोखा दे दिया, वह
वर्ष १,
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कोकिके साथ मिल गई और काशी तथा कोसलके १८ गण राजोंके साथ चेटककी हार हो गई और इस अपमान के मारे उसने अनशन करके देह छोड़ दिया ।
* जहां तक मुझे याद है, यह बात 'निरयावली' मूत्रमें है । इस fe का मैने नोट तक किया है, लेकिन इस बकम तो मेरे पास निरमावती' सूल है और न उसका नोट की।
इस प्रसंग में काशी के ९ गणराज और कांसल के ९ गणराज जो मल्ल और लिच्छिवि जाति की भिन्न भिन्न श्रेणियों के अगुआ थे उनके चेटक की मदद मे लड़ने का उल्लेख है, पर विदेह के किसी भी ग
राजका जिक्र नहीं मिलता। इससे भी यह साबित होता है कि तब तक विदेह में गणराज्य स्थापित नहीं हुआ श्रा। हाँ, अपनी श्रेणियों में वंशपरम्परागत एक एक नायक श्रवश्य माना जाता था, उन श्रेणिपतियों पर राजा चेटक का शासन था और सब कामों में वह
चेटक और कोगिक की यह लड़ाई जैनसूत्रोंमें 'महा शिला कष्टक' इस नामसे वर्णित है । इस लड़ाई में किसकी जीत हुई और किसकी हार, यह प्रश्न करके उत्तर दिया गया है कि इसमें 'बज्जी' और 'वैदेहीपुल' (कोलिक) की जीत हुई और नौ मलक और नौ | देखिये निम्न लिखित भगवतीसूत्र लिच्छवि गणराजेों की हार! के शब्द
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महा शिलाकंटए णं भंते संगामे वहमा के जइस्या के पराजइत्था १, गोयमा ! बज्जी-विदेह से जइत्था नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा महारस बिगणरायाणो परा( भ० श० ७ ३०९ प० ३१५ ) जइत्था ।" यहां टीका में 'वज्जी' शब्द का अर्थ 'बजी' अर्थात् इन्द्र किया है. पर वस्तुतः यहां 'बज्जी' शब्द 'वृजिकजाति' का प्रबोधक है ।
x इस प्रसंग पर बाबू कामताप्रसादजी ने अपने लेखमें नौ मलिक नौ लिच्छवि गणराजों के प्रतिरिक४८ काशी-कौशल के
राजों का जो लेख किया है वह बिलकुल गलत है। काशी कौशल के नौ मलिक मौर नौ लिम्का राजने
युद्ध में साहाय्य प्रदान किया था, दूसरे किसी ने नहीं ।