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वैशाख, ज्येष्ठ, बीरनि०सं० २४५६] अकलंकदेवका 'चित्रकाम्य' [५-२०]
[९-१६] श्री खंडव ताप हरा शिव श्री
श्री रंग जाते सुविधे सदा शा मुखाय गीस्ते सुमते. प्रजा मु
मांशु गौरी विरादी करो ति म हस्तुते सुव्रत देव ती व
वि स्वैक बंधो सि मृगांक ना ना ति रक्रिया कतम सोऽपि वा ।
घि नोपि कोका नपि शांति ना " [६-१९]
[ १०-१५ ] प प्रभाषि द्वय में हसा म
श्री शीतलस्वा जित मोह यो । पर मुदेते स्थिर पक्ष्म बनि
शी लाढच याचे जिन राजश पभो प्रभाते भुवि दिप्य मा ना
नब स्वरूपं हदि संद भाना म जय मीत्वं जिन मल्लिना
न यं लमंने स्वयि धर्मना 4 [७-१८]
[११-१४ ] श्री माम् सुपार्यो पिहि नेस्त मां भ
श्री बस्सिनि श्रीहदि ताव के श्री सुमसुखं पेश न याच का ।
श्रे यांस सका नित राम हो : पा रंगतः पातक बल्लरी १
..या मे निजां देहि वदान्य की नं जनं चार पतिः पना नि
म मीक्ष्य वीरामिम माम नं. . . . [८-१७ ]
[१२-१३] चंद्र प्रमाणोईर मेष शं कु
वा ग्वासुपूज्या गमि की अति श्री . द्रष्टा स्मि हो सम कुंमि यूं
सवं कपंती भव साम्य सा गि मपाल को मुंगति नाप्य यं मा
पूर्ण ममाशा बिमलाय नाम १.सुवर्णे स्वयि कुंचना व
ज्य या समं लीन शिरोन बोड. विक्रमस्य बसुशव (वि) तीवा दुईषु (या इ) सिता । बदा ऽकलंकदेवेन चित्रगम्यम् विनिर्मिता (1)२॥