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________________ ३७५ वैशाख, ज्येष्ठ, बीरनि०सं० २४५६] अकलंकदेवका 'चित्रकाम्य' [५-२०] [९-१६] श्री खंडव ताप हरा शिव श्री श्री रंग जाते सुविधे सदा शा मुखाय गीस्ते सुमते. प्रजा मु मांशु गौरी विरादी करो ति म हस्तुते सुव्रत देव ती व वि स्वैक बंधो सि मृगांक ना ना ति रक्रिया कतम सोऽपि वा । घि नोपि कोका नपि शांति ना " [६-१९] [ १०-१५ ] प प्रभाषि द्वय में हसा म श्री शीतलस्वा जित मोह यो । पर मुदेते स्थिर पक्ष्म बनि शी लाढच याचे जिन राजश पभो प्रभाते भुवि दिप्य मा ना नब स्वरूपं हदि संद भाना म जय मीत्वं जिन मल्लिना न यं लमंने स्वयि धर्मना 4 [७-१८] [११-१४ ] श्री माम् सुपार्यो पिहि नेस्त मां भ श्री बस्सिनि श्रीहदि ताव के श्री सुमसुखं पेश न याच का । श्रे यांस सका नित राम हो : पा रंगतः पातक बल्लरी १ ..या मे निजां देहि वदान्य की नं जनं चार पतिः पना नि म मीक्ष्य वीरामिम माम नं. . . . [८-१७ ] [१२-१३] चंद्र प्रमाणोईर मेष शं कु वा ग्वासुपूज्या गमि की अति श्री . द्रष्टा स्मि हो सम कुंमि यूं सवं कपंती भव साम्य सा गि मपाल को मुंगति नाप्य यं मा पूर्ण ममाशा बिमलाय नाम १.सुवर्णे स्वयि कुंचना व ज्य या समं लीन शिरोन बोड. विक्रमस्य बसुशव (वि) तीवा दुईषु (या इ) सिता । बदा ऽकलंकदेवेन चित्रगम्यम् विनिर्मिता (1)२॥
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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