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शाख, ज्येष्ठ, वीरनि०सं० २४५६]
जैनधर्म की उदारता औ जैनियोंकी संकीर्णता
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जैनधर्मकी उदारता और जैनियोंकी संकीर्णता
लेखक-श्री० साहित्यरत्न पं० दरबारीलालजी, न्यायतीर्थ]
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रिम मनुष्यने जैनधर्मका थोड़ा भी परिचय प्राप्त उनकी मूर्तिकी पूजा नहीं कर सकते हैं। मूर्तिका
किया है और जिसका हृदय रूढियों का गुलाम आसन अाजकल साक्षात् अरहंतसे भी कई फट ऊँचा नहीं है वह अवश्य ही इस बातको कह सकेगा कि मान लिया गया है ! इस आश्चर्यकी मात्रा तब और 'काई भी धर्म जैनधर्मसे बढ़कर उदार और विश्व- भी बढ़ जाती है जब लोग यह तो मानते हुए पाये धम बननेकी योग्यता रखने वाला नहीं है। जैनधर्मकी जाते हैं कि, शूद्र अणुव्रत धारण कर सकता है और ४ायामें भंगी, चमार, कोल, भील, चाँडाल,वेश्या, ग्यारह प्रतिमा धारी भी हो सकता है परन्तु भगवान नन्छ, पशु, पक्षी, नारकी श्रादि सभी संज्ञी प्राणी की पूजा नहीं कर सकता ! मानों पूजाका स्थान ग्या. बाकर अपना आत्मोद्धार एवं विकास कर सकते हैं रह प्रतिमानोंसे भी ऊँचा है !! पजाके करनेमे पुग्य और करने रहे हैं। परन्तु
....... ..............":""""" बंधोमानसिक दु ग्व और खेदकी बात तो . अनेकान्तकी मत पाँचवीं किरणमें 'जैनी
और निर्जग । बंध-भले ही यह है कि आज कलके जैनी : :ो सकता है। इस नामका जो निबन्ध प्रका-:
वह शुभ हो-प्राबिर है ना भाई-जो कि प्रायः स शित हुआहे उस कुछ अर्मेसे देहली-जैनमित्र :
: मंमार का ही अंग, जबकि भी नहीं कह जा सकत": मंडल-पुस्तकके.रूपमें प्रकाशित करना चाहना
संकर और निर्जरामोक्षके अंग अपनेको जैनधर्म का उपाहै। इसीसे मंडलनं कुछ समय हा उमे
हैं। शुद्र मोनके अंगोंको प्राप्त मक कहने हए भी जैन : साहित्यरल.पं.दाबारीलालजीके पाम भेज
कर मकना है परन्तु स्वर्ग । गला घोट रहे हैं, धर्मक : कर उनसे उम पर एक भमिका लिम्व देतेका
अंगों को प्रा नहीं कर म पर अहंकार और अवि। अनुरोध किया था। म अनमंधक परिणाम
गायना. यह कैमी विचित्र । रकी पजा कर रहे हैं। म्वरूप पंडिनजीन जो भमिका निक्कर मंजी:
बान है । जैनशास्त्रोकं अन. :.थी वहीं यह लग्न है जो दम ममय पाठको: या कारण है कि वे शद्रों
मारा प्रत्येक मनायका. :के मामने प्रस्तुत है। --मम्पानक : । मुमलमानांका, ईमात्यों :
- अपने घर में निनप्रतिमा . नथा अन्यदेशोंक मनायांका जैनी बनना नहीं सह सम्बनका अधिकार है। अधिकारी जनप्रतिमा भने । देवपूजा आदि जैनत्वके माधारण अधिकार सम्बना उसका आवश्यक कतव्य है । जिम ममय भी उन्हें नहीं दे सकने । यह किनने आश्चर्य की बात है मथुगमें मारी गंगका दौर-दोग हुआ था और मप्रकि शवम्लेच्छ आदि मनुभ्य-नहीं नहीं पशु-पक्षी नक. पियोंके प्रतापमं वह गैग मान्न नागा नब मषियों। भी-साताम् महावीरकी पूजा तो कर सकतेथे परन्तु ने कहा था
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