________________
वैशाख, बेष्ठ, वीरनि० सं०२४५६]
मंगलमय महावीर
___ मंगलमय महावीर
[ लेखक-साध श्री टी० एल० बास्वानी; अनुवादक-श्री हेमचंद मोदी ।
क्षेत्रका परमपावन महीना महावीरका स्मारक है। नहीं कर सकता।" कहा जाता है कि इस पर इसाक - इस पुण्य मासमें वे आजमे २५ शताब्दी पहले इस प्रवचनकी कि 'पापका प्रतिकार मन करो' छाप अवतीर्ण हुए। उन्होंने पटनाके समीप एक स्थानको है, परन्तु ईसा भी पांच शताब्दी पदले अहिंमाकी अपनी जन्मभूमि बनाया। अशोक और गुरु गोविन्द- यह शिक्षा भारतको दो आत्मनों और ऋषियों-बद्ध महका भी स्मारक होनेके कारण पटना पवित्र है। और महावीर-द्वाग उपदिष्ट और श्राचरित हा पकी
परम्परामे उन महाभागकी जन्म-तिथि चैत्र शुक्ला थी। जैन लोग भगवान, ईश्वर, महाभाग इत्यादि कार यादशी मानी जाती है। यह दिन-महावीरकी वर्षगाँट कर महावीरको पजन है। का दिन-यवकों के कैलेण्डर में स्मरणीय है। युवकों ने उन्हें तीर्थकर भी कहते हैं। मैं जिमका अर्थ को याद रहे, यह तिथि अनेक महावीगेंकी जननी है। करता हूँ "सिद्ध पुरुष" । महावीरका स्मरण उन्हें चौ.
गद्यपि भारत दरिद्र है, फिर भी वह श्री-सम्पन्न बीसवें तीर्थकर मानकर किया जाता है। उनके प्रथम है। उसकी यह श्री उमके मनष्यों में है। उसके करोड़ों तीर्थकरका नाम प्रापभनाथ अथवा आदिनाथ है, जो भनष्य, गदि कुछ करने का संकल्प करें. नी क्या नहीं अगी याम जन्म और कैलाम पर्वत पर महत्तम आत्मकर सकते ' और प्रत्येक शताब्दीमें भाग्तन ऐम ज्ञान (कैवन्य) के अधिकारी हुए। वे उस धर्मके मब कितने महापरुष पैदा नहीं किये, जो श्रात्माकी शक्किमें में प्रथम प्रवर्नक थे, जिम इनिहासमें जैनधर्म कहा है। महान थे क्योंकि वह, जिसकी कीर्तिका प्रमार यह महावीर जैनधर्म प्रवर्तकोंकी लम्बी मचीम है।
चैत्र शुक्ला कर रही है, हमारे इतिहासका एकमात्र उन्होंने इम बौद्ध धर्म की प्राचीनता धर्मका पनी महावीर नहीं हुआ है; अन्य महावीर भी हुए हैं। वे पणा की और टमका पननिमांग किया। हुए है अन्य यगोंमें । वे आमिक क्षेत्र के योद्धा धे। वाग्के विषय में जो 1. नाना , म उन्होंने भारत-भमिको पुग्य-मि बना दिया और उम मुम पर बई। भाग ५मार पड़ा है। उनका जीवन आध्यात्मिक आदर्शवादी श्रीस मम्पन्न कर दिया। अद्वितीय उदारना और अधिनाय मौन्दर्यम परिप __ ये महावीर---अर्थान महान विजयी-ही इतिहास या। बद्धकं ममकालीन होनेके कारण पद्धक योग के साचे महापरुष हैं। ये उद्धतता और हिंसा के नहीं का, युद्धके तपक। और बद्धके मानव-प्रेमका म किन्तु निरभिमानता और प्रेमके महावीर थे। दिलाते है।
रूसके महान ऋषि टास्टायने इस रोगको बार वे ईसाम ५५.५. वर्ष पवे विहानक हर बार अलापा है कि "जिस प्रकार अग्नि पग्निका में जन्मे थे। उनके पिता सिद्धार्थ' एक क्षत्रिय राजा शमन नहीं कर सकती, उसी प्रकार पाप पापका शमन थे। उनकी जननी 'त्रिशला'-प्रियकारिणी-वजियोंके