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वैशाख, ज्येष्ठ, वीरनि० सं०२४५६] मंगलमय महावीर
वे एक महावीर-एक विजेता-एक महापुरुष सेवा करें । महावीर की वीरता उनके जीवन और उन हो जाते हैं, क्योंकि वे शान्ति की शक्ति का विकास के उपदेशों में प्रतिविम्बित है। वह जीवन अद्वितीय करते हैं।
आत्म-विजयका है। उनका उपदेशभी वीरता-पूर्ण है। निःसन्देह ही उनके जीवनने उनके भक्तों पर “सब जीवों को अपने समान समझो और किसी को गहरा प्रभाव डाला । उन्होंने उनके संदेश को सब कष्ट न पहुँचाओ ।" इन शब्दोंमें अहिंसा के द्विगगा नरफ फैलाया। कहा जाता है. कि पायरो (Pyrrho) सिद्धान्नों का प्रतिपादन है। एक स्पष्ट है और दमग नामक यूनानी विचारकने जिमिनोसोफिस्टोंके चरणोंमें गढ़। इन में स्पष्ट' ऐक्य के सिद्धान्तों का अनमरगण दर्शनशास्त्र सीखा । मालम होता है कि ये जिमिनोसो. करता है, अर्थात् अपनेको सबमें देखा; और 'गढ' फिस्ट लोग जैन योगी थे, जैसा कि उनका यह नाम उसमें से विकसित होता है, अर्थात् किमी की हिमा निर्देश करता है।
मत करो। सब में अपने आपका दर्शन करनेका अर्थ बचपनमें उनका नाम 'वीर' रक्खा गया । उस ही किसी को कष्ट देन में झकना है । अहिमा मब जीवों ममय वे 'वर्द्धमान' भी कहलाते थे, परंतु आगे चल में अद्वैतके आभास में ही विकसित होती है। कर. वे 'महावीर' कहलाये। महावीर शब्द का मूल हमारे इतिहासके इस महान वीर का जीवन और अर्थ महान योद्धा है। कहा जाता है कि एक दिन जब उनका मंदेश तीन बातों पर जोर देता है :कि वे अपने मित्रोंके साथ क्रीडा कर रहे थे, उन्होंने ब्रह्मचर्य-बहुन से माधु गोशालके ननत्व में ५क बड़े काले सर्पको उसके फन पर पैर रख कर बड़े नीति-भ्रष् जीवन व्यतीत करते थे। वे भोग्नीके सलाम गौरवसे वशमें किया और तभीसे उन्हें यह विशेषण थे। यह गोशाल उनका ॥1 मागा या नियमा, मिला। मुझे यह कथा एक पक मालूम पड़ती है, तो पीछमें पागल हार माग मका प्रा1क्योंकि महावीर ने सचमुच कपाय-कपीमपको वश क जीवन व्यतीत करना पापांक लि में किया था। वे दर असाल एक महान वीर-महान ब्रह्मचर्य-त्रत अनिवार्य कर दिया है, नम iii विजेता-थे। उन्होंने गग और द्वेषको जीत लिया था। गवक भाग्न का पननिर्माग एक महान दशके qil उनके जीवनका मुख्य उद्देश्य चैतन्य था ' । वह जीवन करना चाहें, उन्हें ब्रह्मचर्य की गति में पूर्ण हो परम शक्तिका था। 'पीत वर्ण' और 'सिंह' ये दो उन चाहिए। के प्रिय चिह्न हैं । श्राधनिक भारत को भी महान वीग श्रीकान्तवाद याभ्या--महामन्यात की आवश्यकता है। मिर्फ धन या ज्ञान बहुत कम कि विश्व का कोई भी एक बापु मायका in ult उपयोगी है। आवश्यकता है ऐसे पुरुषार्थी पुरुषोंकी, पादन नहीं कर मकना, क्योंकि माग अनन्त है । मग जो अपने हृदय से डरको निर्वासित कर स्वातन्त्र्य की मुझ पाइन्टनक मापंचवाद | Mulant in thlirat
* कषाय हिंसाका भाव-क्रोध, मान, माया, लोमा ivity) के आधुनिक संप्रयोगका माना।
+ The Central note of his life was हमने अभी कुछ वर्षों में धमके नाम वाद-विवारचौर 'Virya' Vitality.
पृणाके कारण काफी कष्ट उठाया है। महावीर की