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अमेकान्त
[वर, किरण पथि प्रवृत्तं विषये महीमृता
उसके सिर पर विपत्तियों के बादल सर्वदा मंडराते नितान्मस्थाननिवेशिनो भ्रमात् ।
रहते हैं। মণি নিববি
অজ জাল খুলনা কাজী ইলশধী বলা • पला दण्डः खलु दण्डधारकम् ॥ को कुलक्रमागत संपदा के अतिरिक्त अन्य देशों के वि
'राजमार्ग बड़ा कठिन है, उसमें पैर रखकर जो जय करने का कष्ट न उठाना चाहिये, जिसमें प्राणों तक न्यायाधीश भ्रम से निर्दोष पुरुष को जबरन दण्ड
की आशंका रहती है। यदि जीवित रहेंगे तो थोड़े से देता है वह भन्याययुक्त दण्ड उस न्यायाधीश को राज्य मे ही यथेष्ट सुखोपभोगकर सकेंगे। मरनेके बाद बदनाम ही नहीं करत किन्तु उसको पदच्यत भी कर विजित देश साथ तोजायेंगे नहीं। इस आशंकाका उत्तर डालता है।
कवि के ही शब्दों में पढ़ियेइस प्रकार राजमार्ग के पथिक को पद पद पर
इहोपभुक्ता कतम में मेदिनी विचार और सहिष्णुता से कार्य करना चाहिये । जो
परं न केनापि जगाम सा समम् । नरेश राष्ट्र तथा पाइराष्ट्रकी नीतिको गुप्तचरों फलं तु तस्याः सकलादिपार्थिवके द्वारा जामकर रामकर्मचारियों पर प्रेमपूर्ण स्फुरद्गुणग्रामजयोर्जितं यशः ॥ बर्ताव के साथ कदी दृष्टि भी रखता है वही भावि-वि- 'इस पृथ्वी का उपभोग सैकड़ों पृथ्वीपति कर गये पत्तियोंसे बच सकता है । इसके विपरीत जो नप भोग किन्तु यह किसीके साथ नहीं गई । फिर भी सकलबिलास में प्रासक्त होकर अपना कर्तव्य भूल जाता है गणशाली पृथ्वीपतियों को जीत कर पृथ्वी पर अपना
यशविस्तार करना ही इसके जीतनेका फल है, जो कि ....."जब तक काम हो जाय तब तक मन्त्र में सम्मिलित बोगों पकड़ी मजार । इमी से मन्त्र की रक्षा होती है।
राजन्यों का मुख्य धर्म है।' प्रमाद, शराब, स्का में बोलना तथा प्रलाप करना. काम में वास्तव में जो राजा
कर बिसीसी में फंस जाना पादिभनेक बारणों सेमन्त खुल घिनोति मित्राणि न पाति न मजा-. जान है.बमा किये हुए स्वभाव वाले दुरमन तथा राजा द्वाग विभर्ति भत्यानपि नार्थसंपदा । बेइज्जत किये गये लोग मंत्र खोल देते हैं। अतः राजा इनसे मन्त की रक्षा करे । राजा या कर्मचारियों द्वारा मन्त्र के खुलने पर
न यः स्वतुल्यान्विदधाति बान्धवान् दुश्मनों को ही लाभ पहुँचता है।' (को०अ० २२)
स रानशब्दपतिपत्तिभाकथम् ।। ४० ॥ इसी प्रकार परिवारसयतबार सोमदेवकहते हैं
'अपने मित्रों को प्रसन्मनहीं रखता, प्रजा का रक्षपुजवाती दिएकामकोचाम्यामMIT ण नहीं करता, त्राश्रित सेवकों को धनसम्पदा से सहासेपिरोति।
यता नहीं करता और अपने बन्धुओं को अपने सदृश 'काम, कोष तथा मूर्खतासे दिया हुआ मन्याययुक्त दण्ड राजा ऐश्वर्यशाली नहीं बनाता वह 'राजा' कहलाने का पात्र पसर्वनाश कर देता है।' .
ही नहीं है।'