________________
२७४
भनेकान्त
वर्ष १, किरण ५ बनाया हुमा 'विदग्धमुखमंडन' नामका एक बौद्ध ग्रंथ ऐसे बारह प्रकरण हैं और ये सब विषय पन्थकी ९५ है। इस प्रथकी समाप्ति के बाद पत्रके खाली स्थान पर गाथासंख्या के भीतर ही वर्णित हैं । पहली दो गाथाएँ कुछ संस्कृत प्राकृतके पग लिखे हुए हैं, जिनमेंसे पहले इस प्रकार हैं:पथकं बाद परासा संस्कृत गद्य देकर अठारह लिपियों णमिय जिणपासायं विग्यहरं पणयवंचियत्थपयं। की सूचक दो गाथाएँ दी हैं, जो इस प्रकार है:- बच्छं नत्तत्वयारं संखवेण णिसापेह ॥ १॥
"शुभं भवतु श्रीसंघस्य भद्रं। समसायरी अपारो माकुंथोयं वयं च दुम्मेहा। हंसलिवी भूयलिवी जक्खी रखुसी य वोधव्वा तं किंपि सिक्खियब्वं जं कज्जकरं च योवं च ।। ऊही जवणि तुरुक्की कीरी दाविति य सिंपविया १ पहली गाथामें पार्श्वजिनको नमस्काररूप मंगलापाखविणी नहि नागरि लाडलिवीपारसी यबोधचा चरणके बाद संक्षेपमें तत्त्वविचार' नामक ग्रंथ रचनेकी ता भनिमत्तीय लिवी चाणकी मूलदेवी य ॥२ प्रतिज्ञा की गई है और दूसरी में यह बतलाया है कि
श्रुतसागर तो अपार है किन्तु आयु अल्प और बुद्धि अष्टादशः लिप्यः ॥"
मंद है इम मे थोड़े में ही जो कार्यकारी है वही शिक्षइनसे पठारह लिपियोंके १हंसलिपि, २ भूतलिपि, णीय है । इसके वाद पंचपरमेष्ठी को नमस्कार करके ३ यक्षी, ४ राक्षसी ५ ऊही ( उडिया? ), ६ यवनानी
नवकार (नमस्कार) मंत्र का माहात्म्य वर्णन किया है (यनानी), ७ तुरुकी, ८ कीरी (काश्मीरी), ९ द्राविडी जिसकी एक गाथा इम प्रकार है१० सिंघवी, ११ मालविणी, १२ नडि ( कनड़ी ?). १३ देवनागरी, १४ लाडलिपि (लाटी, गुजराती), १५ ।
जो गणइ लक्ख गं पयविही जिणणमोकार । पारसी (फारसी), १६ प्रमात्रिकलिपि, १७ चाणक्यी तित्थयरनामगोत्तं सो बंधइणस्थि सदेहो ॥ १५ (गुप्तलिपि, और १८ मूलदेवी, (नामी ?) ये नाम पाए इसमें ‘णमोकार मंत्रके एक लाख जाप से नि:जाते हैं। इनमें से अनेक लिपियों का विशेष परिचय संदेह तीर्थकर गोत्रका बंध होना है' ऐसा बसलाया है। 'मालूम करने और उनके उदय-अस्तको जानने की इसी तरह दूसरे प्रकरणोंका भी वर्णन करते हुये अन्त
में लिखा है:. . . . (११)
पसोतवियागंसारी सजन जणाणसिबसन्दी तत्त्वविचार और वसनन्दी वसुनन्दिमरिरहउभपाणं पोहणडं ग्बु ।। ६४ बम्बईके 'ऐलक-पमालाल-सरस्वती-भवन में तत्त्व- जो पइ मुणइ मक्खा भएणं पाहे देह उसएस विचार' नामका एक प्राकृत पन्थ है जिसमें रणवकार सोरणहणिय य कम्म कपेण पिदानयंनाइ ६५ फल,२ धर्म,३ एकोनविंशावना, ४ सम्यक, ५ पूजा- अर्थात्-सज्जनों को शिवमुख के देने वाले इस पाल, ६ विनयफल, प्यायल्य, ८ एकादरापतिमा,९ तत्वविचार नाम के सारप्रन्धको वसुनन्दिरिने भन्यजीवदया. १० सावबविहि, ११ पशुवत और १२ बान जनों के प्रोपनार्य रखा है। जो इसे पढ़ते हैं, मुनते हैं