________________
२९८
अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ५ को बाध्य हूँ कि उनमें भी ऐसा वर्णन शायद ही देशमें तब साम्राज्यवाद के स्थान पर एक प्रकार का मिले।
प्रजातंत्रवाद प्रचलित था । चेटक उस राष्ट्र के राष्ट्रपति (२) थरावली का जो अंश प्रकट हुआ है उस से नियुक्त थे३ । अतः यह हार उनकी निजी न होकर मालूम होता है कि उममें तत्कालीन भारतके अन्य गष्ट की थी और राष्ट्र का प्रत्येक प्रतिनिधि तब 'राजा' राज्यों का भी पूर्ण वर्णन होगा । यदि यह बात है, तो कहलाता था, यह बात भी स्पष्ट है । इस हालत में बिना किसी अधिक विलम्बके उक्त थेरावलीको पूर्णतः चेटक के पुत्र का भाग कर कलिंग पहुँचना और वहाँ प्रकट करना चाहिये । फिर भी जो अंश प्रकट हुआ है पर नया राज्य और वंश स्थापित करना बाधित है । उसका सामजस्य केवल जैनशास्त्रों से ही ठीक नहीं श्वेताम्बरीय शास्त्र निर्यावली' और 'भगवती सूत्र' में बैठता, बल्कि जैनेनर साहित्यसे भी वह बाधित है; अजातशत्र और चेटक की उक्त लड़ाई का वर्णन है । जैसा कि भागे चल कर प्रकट होगा । और यदि उसमें उसमें साफ लिखा है कि 'चटकन इस आपत्ति को उक्त राजवंशके वर्णनके अतिरिक्त अन्य किसी राजवंश आया जान कर नौ मल्लिक, नी लिच्छिवि और ४८ का वर्णन नहीं है, तो उस सहसा म्वीकार कर लेना काशी-कौशल के गणराजों (गणरायालो) को तैयार सुगम नहीं है।
किया। ४ इससे स्पष्ट है कि इन गणराजों का नेतृत्व - " (३) राजा चेटकके नामकी अपेक्षा किसी 'चेट' राजा चेटक ग्रहण किये हुए थे। वंशका मस्तित्व इससे पहले के किसी माहित्यप्रंथ या (४) चेटक का लिच्छिवि वंश पहले से ही बहुत शिलालेखसे प्रगट नहीं है। और चेटकका वंश लिच्छिवि' प्रख्यात था और उस समय अन्य क्षत्रिय लोग उनसे प्रसिद्धमा जो उत्तर भारतमेंगा काल तक विद्यमान रहा, विवाहसम्बन्ध करनेमें अपना अहोभाग्य समझते थे। यह बात निर्विवाद सिद्ध है। गमवंशीय चन्द्रगत प्रथमका इस दशामें यदि शोभनराय भाग कर कलिंगगया होता विवाह लिच्छिवि वंशीय कुमारदेवीमे हुआ था ।को- तो उसने अपने इम सर्वमान्य वंश का नाम कदापि न टिल्यने सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के जमाने तक लिच्छिवि पलटा होता और उसे अपनं उस पिताके नाममें परिववंशनोंको उत्तरभारममें राज्याधिकारी लिखा है और र्तित न किया होता जो कोई बहादुर्गन दिखा कर इतिहाससे यह पता चलता है कि अजातशत्रके द्वारा उलटा मगध राजके हाथ अपना राज्य गैंग बैठा था। परास्त किये जाने पर भी लिच्छिवि अपने राज-संघके (५) दिगम्बर जैनशान 'उत्तरपुराण' में राजा चेअस्तित्व को बनाये रख सके थे । इसके साथ ही, टककं दस पुत्र बतलाये हैं और उनके नाम ये दिये इतिहास और स्वयं श्वेताम्बर-अन्यों से यह सिद्ध है हैं-धनदत्त, धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त वाक्, सिंहभद्र, कि चेटक कोई परम्परागत राजा नहीं था । विदेह सुकुंभोज, अकंपन, सुपतंग, प्रभंजन और प्रभास (पृ०
६३४ ) । इनमें शोभनराय नामका कोई पुत्र नहीं है। १.भारतके प्राचीन राजश, भा॰ २, पृ०२४२
१. लिमिक्किाकिरदवाकरकरुपाबालाइयो राजशमी- ३. समक्षनी लेन्स इन एन्शियेन्ट इण्डिया, पृ.१३५-१३६ पजीविनः सवाः ।
-पति टिल्यः । ४. भारती । विडयन ऐन्टीक्वरी भा.११,पृ.२१ ३.सम वतीन्सन ऐन्सियन्ट इणिया, पृ.१३५-३६ ५. भगवान महावीर पृ. ५७