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अनकान्त
[वर्ष १, किर संभव है कि इस मूलको लेकर ही किसी दन्त- पद्य नहीं दिया; यह बात मुझे बहुत खटकती थी और कथाके आधार पर उक्त कथा की रचना की गई हो; इसलिये मैं इस बातकी खोजमें था कि ग्रंथकी अन्याक्योंकि यहाँ प्रश्नकता और प्राचार्य महोदयके जो न्य हस्तलिखित प्रतियों परसे यह मालूम किया जाय विशेषण दिये गये हैं प्रायः वे सब कनड़ी टीकामें भी कि उनका भी ऐसा ही हाल है अथवा किसीमें कुछ पाये जाते हैं। साथ ही प्रश्नोत्तर का ढंग भी दोनों का विशेष है । खोज करते हुए जैनसिद्धान्तभवन, पारा एक ही सा है। और यह संभव है कि जो बात सर्वार्थ- की एक प्रतिमें, जिसका नम्बर ५१ है, उक्त ३२श्लोको :: सिद्धि में संकेत रूपमे नी गई है वह बालचंद्र मुनि को के बाद, एक पद्य इस प्रकार मिला है:गुरुपरम्परा से कुछ विस्तार के साथ मालूम हो और इति तत्वार्थसत्राणां भाष्यं भाषितमुत्तमैः । उन्होंने उसे लिपिबद्ध कर दिया हो; अथवा किसी दूसरे यत्र संनिहितस्तन्यायागमविनिर्णयः ।। ही मन्थसे उन्हें यह सब विशेष हाल मालूम हुआ सपथके द्वारा तत्त्वार्थसत्रोंके-अर्थात्, तत्त्वाथ हो । कुछ हो, बात नई है जो अभी तक बहुतों के
शास्त्र पर बने हुए वार्तिकोंके-भाष्यकी समाप्तिको आनन में न पाई होगी और इससे तत्वार्थसत्र का
सूचित किया है और यह बतलाया है कि इस भाष्यम संबन्ध-दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंके
तर्क, न्याय और आगमका विनिर्णय अथवा तर्क, साथ स्थापित होता है। साथ ही, यह भी मालम
न्याय और भागमके द्वारा विनिर्णय संनिहित है होता है कि इस समय दोनों सम्प्रदायोंमें आज कल
इसमें संदेह नहीं कि यह पद्य तत्त्वार्थवार्तिक भाष्यका जैसी खींचातानी नहीं थी और न एक दुसरं को घणा
अन्तिम बाश्य मालूम होता है। परंतु अनेक प्रतियोम की दृष्टि में देखता था।
यह वाक्य नहीं पाया जाना. इसे लेखकोंकी करामात (१२)
ममझना चाहिये। तत्त्वार्थराजवार्तिकका अन्तिम वाक्य .. सनानन-जैनमन्थमाला में श्रीयत पं० पन्नालाल जी न्यायदीपिकाकी प्रशस्ति बाकलीवालन 'तत्वार्थराजवार्तिक' नामका जो प्रन्थ श्राराके जैनसिद्धान्तभवनमें 'न्यायदीपिका' की प्रकाशित कराया है उसके अन्तमें ३२ श्लोक 'उक्तंच' जो प्रति नं. १५६ की है उसके अन्तमें निम्नलिखित रुपसे दिये हैं और उनके साथ ही ग्रंथ समान कर दिया प्रशस्ति पाई जाती है:है। इन श्लोकोंके बाद प्रन्यकी समाप्तिसूचक कोई मगरोवर्धमानेशो वर्षमानदयानिधेः ।
*भुतसागी टीकामें भी इसी मूलका प्रायः अनुसरण किया श्रीपादस्नेहसम्बंपत्सिदेयं न्यायदीपिका ॥१॥ गया।मौर इसे सामने सभी प्रत्यकी सत्यामिक लिखी गई
और इसके बाद अन्तिम संघिइस प्रकार दी है:सापही, इतना विशेष किसमें प्रश्न विनका नाम 'बार अधिक दिया है।मडी टीकावाली और बातें कमी
इति श्रीमदर्भमानमहारकाचार्यगुरुकाएकदीया टीमकनकी टीमसेईसौर्वबाकी बनी है।