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अनेकान्त
[वर्ष १ किरण, ५ गृहस्थोऽपि व्रतशीलपुण्यसंचयपवर्तमानस्तदा- जिनका सम्बंध भविष्यके क्षणोंसे ही नहीं, युगोस भयस्य शरीरस्य न पातमभिवाग्छति तदुप्लव- होता है। मनुष्य के पास जितना ज्ञान और शक्ति है कारणे चोपस्थिते स्वगणाविरोधेन परिहरति उसका उचित उपयोग करना चाहिये । सर्वज्ञता प्राप्त दुष्परिहारे च यथा स्वगणविनाशो न भवति नहीं है और थोड़े शानका उपयोग नहीं किया जा सकता, तथा प्रयतति कथमात्मवधो भवेत्"। ऐसी हालत में मनुष्य बिलकुल अकर्मण्य हो जायगा।
-तस्वार्थराजवार्तिक । इसलिये उपलब्ध शक्तिका शुभ परिणामोंसे उपयोग भावार्थ-कोई व्यापारी अपने घरका नाश नहीं
करनेमें कोई पाप नहीं है। दूसरी बात यह है कि भौतिक पाहता । अगर घरमें आग लग जाती है तो उसके
जीवन ही सब कुछ नहीं है-भौतिक जीवन को सब बुझानेकी चेष्टा करता है। परंतु जब देखता है कि
कुछ समझने वाले जीना ही नहीं जानते; वे जीते हुए इसका बुझाना कठिन है तब वह घरको पर्वाह न भी मृतकके समान है। ऐसे भी अनेक अवसर आते हैं करके धनकी रक्षा करता है। इसी तरह कोई आदमी जब मनुष्यको स्वेच्छा संजीवनकात्याग करना पड़ता है। शरीरका नाश नहीं चाहता। परंतु जब उसका नाश युद्ध में आत्मसमर्पण कर देनसे या भाग जानेसे जान निम्भित हो जाता है तब वह उसे तो नष्ट होने देता है
बच सकने पर भी सवीरय दोनों काम न करके मर और धर्मकी रक्षा करता है। इसलिये यह पात्मषध
जाते हैं। वह चीज़ , जिसके लिये वे जीवन का त्याग
करदेते हैं, अवश्य ही जीवन की अपेक्षा बहुमूल्य है। नहीं कहा जा सकता।
इसलिये उनका यह काम आत्महत्या नहीं कहलाता। इस पर कहा जा सकता है कि सर्वज्ञके बिना यह
बहुत दिनहुए किसी पत्रमें हमने एक कहानी पढ़ी थी, कौन निश्चित कर सकता है कि यह मर ही जायगा,
उसका शीर्षक था "पतिहत्या में पातिव्रत्य" । उसका क्योंकि देखा गया है कि जिस जिस रोगीकी अच्छे
- अंतिम कथानक यों था-युद्धक्षेत्र में राजा घायल पड़ा प्रच्छ चिकित्सकोंने भाशा छोड़ दी वह भी जी गया
था, रानी पास में बैठी थी। यवनसेना उन्हें कैद करनेके
। है इसलिये संशयास्पद मृत्युको सल्लेखनाके द्वारा लिये पा रही थी। राजाने बड़े करुणस्वरमें रानीसे निमित मृत्यु बना देना भात्मबध ही है। दूसरी बात कहा“ देवि ! तुम्हें पातिव्रत्यकी कठिन परीक्षा देनी यह है कि चिकित्सासे कुछ समय अधिक जीवनकी पडेगी। रानीके स्वीकार करने पर राजाने कहा कि भाशा है, जबकिसलेखनासेवह पहिले ही मरजायगा। "मेरा जीवित शरीरयवनोंके हाथमें जावे इसके पहिले अतः यहभी पात्मवध कहलाया और सल्लेखना कराने मेरे पेट में कटारी मारदो"। रानी घबराई, किन्तु जब बाले मनुष्यघातक कहलाये।
शत्रु बिलकुल पास भागये, वन राजा ने कहा "देवि! निःसन्देह हम लोग सर्वज्ञ नहीं है। परंतु दुनिया परीक्षा दो! सबी पवित्रता बनो!" रानी ने राजाके पेट के सारे काम सर्वज्ञ द्वारा नहीं कराये जा सकते। में कटारी मारदी और उसी कटारीसे अपने जीवनका हम लोग तो भविष्य के एकापणकी भी बात निमित भी अंत कर दिया। यह था 'पविहत्या में पावित्रत्य । दी जान सकते, परंतु काम तो ऐसे भी किये जाते हैं। इस से मालूम होता है ऐसी भी चीज है जिनके लिये