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फाल्गुन, वीर नि०सं० २४५६] मेवाडोद्धारक भामाशाह होकर उसके तिलक किये जाने की आज्ञा दी गई"x। महाराणा अमरसिंह उसे इतने अमूल्य रल कैसे देता? ___वीर भामाशाह ! तुम धन्य हो !! आज प्रायः आगे आने वाले महाराणा जगतसिंह तथा राजसिंह माढे तीनसौ वर्षसे तुम इस संसार में नहीं हो परन्तु अनेक महादान किस तरह देते और राजसमुद्रादि यहाँ के बचे बचे की जबान पर तुम्हारे पवित्र नामकी अनेक वृहत-व्यय-साध्य कार्य किस तरह सम्पन्न होते? छाप लगी हुई है । जिस देश के लिये तुम ने इतना इस लिये उस समय भामाशाह ने अपनी तरफ से न बड़ा श्रात्म-त्याग किया था, वह मेवाड़ पुनः अपनी देकर भिन्न-भिन्न सुरक्षित राज-कोषोंसे रुपया लाकर म्वाधीनता प्रायः खो बैठा है। परन्तु फिर भी वहाँ तु- दिया *।" म्हारा गुण गान होता रहता है । तुमने अपनी अक्षय- इस पर त्याग भूमि के विद्वान् समालोचक भीहंस कीर्ति से स्वयं को ही नहीं किन्तु समस्त जैन-जातिका जी ने लिखा है :मस्तक ऊँचा कर दिया है । निःसन्देह वह दिन धन्य “निस्सन्देह इस युक्ति का उत्तर देना कठिन है, होगा जिस दिन भारत वर्ष की स्वतंत्रता के लिये जैन- परन्तु मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप को भी अपने ममाज के धन कुबेरों में भामाशाह जैसे सद्भावों का खजानों का ज्ञान न हो, यह मानने को स्वभावतः उदय होगा।
किसीका दिल तैयार न होगा। ऐसा मान लेना महा
राणा प्रताप की शासन-कुशलता और साधारण नीतिजिस नर-रत्नका ऊपर उल्लेख किया गया है, उसके मत्ता से इन्कार करना है । दूसरा सवाल यह है कि चरित्र, दान आदि के सम्बन्ध में ऐतिहासिकों की यदि भामाशाह ने अपनी उपार्जित सम्पत्ति न देकर चिरकाल से यही धारणा रही है । किन्तु हाल में केवल राजकोषों की ही मम्पत्ति दी होती तो इसका गयबहादर महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकर हीराचंद और उसके वंश का इतना सम्मान, जिसका उल्लख श्री जी ओझा ने अपने उदयपुर राज्य के इतिहास में प्रोमाजी ने पृ० ७८८ पर किया है x, हमें बहुत "महाराणा प्रताप की सम्पत्ति" शीषेक के नीचे महा संभव नहीं दीखता। एक खजांची का यह ता साधा. गणा के निराश होकर मेवाड़ छोड़ने और भामाशाह रण सा कर्तव्य है कि वह भावश्यकता पड़ने पर कोष के रुपये दे देने पर फिर लड़ाई के लिये तैयारी करने में रुपया लाकर। कंवल इतनं मात्र से उसके वंश. की प्रसिद्ध घटना को असत्य ठहराया है। धरों की यह प्रतिष्ठा ( महाजनों के जाति-भाजक
इस विषय में आपकी युक्ति का सार 'त्यागभूमि' अवसर पर पहले उसको तिलक किया जाय ) प्रारंभ के शब्दों में इस प्रकार है :
हो जाय, यह कुछ बहुत अधिक युक्ति-संगत मालूम "महाराणा कुम्भा और साँगा भादि द्वारा उपा- नहीं होता +।" जिंत अतुल सम्पत्ति अभी तक मौजूद थी, बादशाह -
* देखो उदयपुर राज्यका इतिहास जिल्द पहली पृष्ठ ४६३-६६ अकबर इसे अभी तक न ले पाया था । यदि यह स. .
४ सम्मान की बात इसी लेख में अन्य उक इतिहास म्पत्ति न होती तो जहाँगीर से सन्धि होने के बाद अतर दी गई है।
xउदयपुरराज्यका इतिहासजिल्द पहली, म०४७५-७मे। + त्यागभूमि वर्ष ३ मा ४.४ ।