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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ४ सुरक्षित स्थान न था । अत्याचारी मुगलोंके भाक्रमणों को जो धन भेटकिया था वह इतना था कि २५ हजार के कारण बना बनाया भोजन राणाजी को पाँच बार सैनिकोंका १२ वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। छोड़ना पड़ा था । इतने पर भी पान पर मर मिटने भामाशाह के इस अपूर्व त्याग के सम्बन्धमें भारतन्दु वाले समर-केसरी प्रताप विचलित नहीं हुए । वह बाबू हरिश्चन्द्रजी ने लिखा है:अपने पुत्रों और सम्बन्धियोंको प्रसन्नतापूर्वक रण क्षेत्र ____ जा धन के हित नारि तने पति, में अपने साथ रहते हुये देख कर यही कहा करते थे पूत तजे पितु शीलहि सोई । कि राजपूतोंका जन्म ही इस लिये होता है। परन्तु भाई सों भाई लन रिपु मे दुनि, उस पर्वत जैसे स्थिर मनुष्यको भी आपत्तियोंके तीन
मित्रता मित्र तनै दुख जाई । थपेड़ोंने विचलित कर दिया। एक समय जंगली भन्न
ता धन को बनियाँ हैं गिन्यो न, के पाटे की रोटियाँ बनाई गई, और प्रत्येक के
दियो दुख देश के भारत होई । भागमें एक एक रोटी-माधी उस समय के लिये
स्वारथ अर्य तुम्हारो ई है, और पापी दूसरे समय के लिये-माई । राणा प्रताप राजनैतिक पेचीदा उलझनों को सुलझाने
तुमरे सम और न या जग कोई ।। में व्यस्त थे, मातृभूमि की परतंत्रता के दुख से दुःखी
देशभक्त भामाशाहका यह कैसा अपूर्व स्वार्थहोकर गर्म निश्वास छोड़ रहे थे कि, इतने में लड़की ।
त्याग है ! जिस धनके लिये औरंगजेब ने अपने पिता दयभेदी चीत्कार ने उन्हें चौंका दिया। बात यह
को कैद कर लिया,अपने भाईको निर्दयतापूर्वक मरवा हई कि एक जंगली बिली लडकीकी मीनी डाला, जिस धनके लिये बनवीरने अपने भतीजेको उठा ले गई। जिससे मारे भखक वह चिल्लाने मेवाड़ के उत्तराधिकारीबालक उदयसिंहx-को मरवा लगी । ऐसी ऐसी अनेक प्रापचियों से घिरे हुये, शत्रु
I डालनेके अनेक प्रयत्न किये, जिस धनके लिये मारवाड़ के प्रवाहको रोकने में असमर्थ होने के कारण, वीर ।
के कई राजाओंने अपने पिता और भाइयोंका संहार चूडामणि प्रताप मेवाड़ छोड़ने को जब उग्रत हुए तब
किया, जिस धनके लिये लोगोंने मान बेचा, धर्म भामाशाह राणाजी के स्वदेश निर्वासन के विचार को
देखो, या राजस्थान जि.१.४.१.३।
xया उदयसिंह राणा प्रताप के पिता थे, ने अपने माम सुनकर रो ठा!
पर उदयपुर बसाया था । बचपन में जब इसका स्वाबनवीर इनके . इस्दीघाटी के युद्ध के बाद भामाशाह कुम्भलमेर का प्यासा हो उठा तय पमा पाईने बालक उदयसिंहको जिसके की प्रजा को लेकर मालबे में रामपुरे की भोर चला मायमें रूखापा उसका नाम माशाया था। या गर्मानुयायी गया था, वहाँ भामाशाह और उसके भाई ताराचंदने था। राजा के शत्रु को अपने यहां पर मय ही स समय
माशाशाह ने साहस काम किया था । सनस्विी की १२वीं मालवे पर पढ़ाई करके २५ लाख रुपये तथा २० हजार
शतानी में प्राशाशाह के पूर्वज दिममी से समरकेशरी के साथ प्रशफिया एण्डस्वल्प वसूल की। इस संकट-अवस्था में पाए थे। इससे पहिले भारत के सत्राट् महाराज पृथ्वी में उस वीरने देशभक्ति तथा स्वामिभति से प्रेरित राजकीमा में एक के पद पर विराजमान थे। वंडो, अ. होकर, कर्नल जेन्स टॉस कवनानुसार, राणा प्रताप राजस्थान, प्रथम भाग ।