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मालाब, बीरनिव्सं०२४५६]
श्रीखारवेल-प्रशस्ति भौर जैनधर्मकी प्राचीनता
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श्रीखारवेल-प्रशस्ति और जैनधर्मकी प्राचीनता
[लेखक-भीकाशीप्रसाद जायसवाल ]
चक्रवर्ती अशोक मौर्य के शिलालेखमें जैन भिक्षुओं वाहन ने दो दो बार अश्वमेध किया यह शिलालेखोसे
__की चर्चा (निगंठ अर्थात् ) निर्मथ नामसे आई साबित है। तीसरे, भीखारवेल कलिंगवाले को भी है । पर वह उल्लेख मात्र है । वस्तुतः सबसे पहला जैन भारतमें चक्रवर्ती पद प्राप्त करनेकी लालसा हुई। शिलालेख वह है जो उड़ीसाके भवनेश्वर-समीपवर्ती मगधके राजा नंदवर्द्धन और अशोकने कलिंग जीता खंडगिरी-उदयगिरि नामक ..........." ........" था, इसका बदला भी इन्हों पहाड़की हाथीगुफा नाम- इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान् जायसवाल ने चकाया और कलिंगसे धेय गुहा पर खुदा हुआ है। जी का यह लेख नागरीप्रचारिणी पत्रिकाके :
नंदराजा द्वारा भाईहुई जिनयह कलिंगाधिपति चेदिवंश
हाल के (भाग १० के) अंक नं०३ में प्रकट :
हुआ है। इसमें जैनसम्राट खारवेल, उनके मूर्तियाँ वे मगध से वापिस वर्द्धन महाराज खारवेल कामनाले जैनधर्म की प्राचीनता आदिले गए तथा मगध के सोशकलिखाया हुआ है। इस राजा के विषय में जो कुछ कहा गया है वह जैन खाने से अंग-मगधके रत्न का प्रताप एक बार चन्दगत: विद्वानों के जानने तथा विचार करने योग्य : प्रतिहारों समेत उठा ले गए। और अशोकका सा चमका। है । लेखक महाशय भी कुछ नामों की बाबत : सारे भारतवर्ष में, पांड. उनसे यह जानना चाहते हैं कि वे किसी जैन: इसी समय दमेत्रिय नामक देश के राजा से लेकर
। प्रन्थ में उल्लेखित मिलते हैं या कि नहीं। : यवनराज, जो अफगानिस्तान उत्तरापथ, तथा
उनका इस इच्छा को कुछ अंशों में पग करने : ओर बाल्हीक का राजा था,
स: वाला मुनि कल्याणविजयजीका एक लेख भी: भारत पर टूट पड़ा और लेकर महाराष्ट्र देश तक इस इस किरणमें प्रकाशित हो रहा है और दूसरे : मथुरा, पंचाल, सात को की विजय वैजयंती फहराई। बा० कामताप्रसादजी के लेख पर भी इससे : जो मगध साम्राज्य के सूबे मौय्ये साम्राज्य पतन : कुछ प्रकाश पड़ता है। इन सब बातोंकी उप- थे. लेता दूमा पटने तक
योगिता को ध्यान में रखते हुए ही यह लखपन गया । इसने भी सिंहासन पर चढ़ने की
चन का................ ........ मौर्या सिंहासन पर बैठने का कामना चार भादमियोंको हुई । एक तो पटने के मौर्य पूरा मंसूबा किया था। यह अपनी कामनामें प्रायः सेनापति पुष्यमित्र धुंगवंशीय प्रावण थे जो नालंदामें सिद्धार्थ हो चुका था कि उधरसे खारवेल झारखंडपैदा हुएथे।दूसरे सातवाहनीय शातकर्णी जो दक्षिणा- गयासे होते हुए मगध पहुंचे और उन्होंने राजगृह पथके राजा कहलाते थे, तथा महाराष्ट्र देश और अंध्र तथा बराबर (गोरथगिरि) के गिरिदुर्गाके चारों ओर देशके पीच परिश्रम देशमें राज्य करते थे। इनका भी घेरा डाला । उन्होंने गोरथगिरि सर किया । दमेत्रिय एक ही पुरतका नया राज्य था,येभी प्रापण थे। दोनों पटोको किलाबंदी तोड़ न सका और खारवेलकी ने अर्थात् सेनापति पुष्यमित्रने और शातकी मान- भाई का एलबमा अपने बाम राममें विद्रोह
साथ ही भारतवर्षके साम्राज्य: यहाँ पर दिया जाता है।
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