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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ४
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प्रसिद्ध देशभक्त पं० अर्जुनलाल जी सेठी का पत्र
अनेकान्त-साम्यवाद की जय . अनेक द्वन्द्रों के मध्य निर्द्वन्द्व 'अनेकान्त' की दो किरणें सेठी के मोह तिमिराच्छन्न बहिरात्मा को
मेद कर भीतर प्रवेश करने लगी तो अन्तरात्मा अपने गुणस्थान-द्वन्द्र में से उनके स्वागतके लिये साधन: । जुटाने लगा । परन्तु प्रत्याख्यानावरण की तीव्र उदयावली ने अन्तराय के द्वारा रूखा जवाब दे दिया; कंबल अपायविचय की शुभ भावना ही उपस्थित है । आधनिक भिन्न भिन्न एकान्ताग्रह-जनित साम्प्र-: दायिक, सामाजिक एवं राजनैतिक विरोध व मिथ्यात्व के निराकरण और मथनके लिए अनेकान्त-तत्ववाद: के उद्योतन एवं व्यवहार रूप में प्रचार करने की अनिवार्य आवश्यकता को मैं वर्षों से महसूस कर रहा हूं। परन्तु तीब्र मिथ्यात्वोदय के कारण आम्नाय-पंथ-वाद के रागद्वेष में फंसे हुए जैन नामाख्य जनसमूह को : ही जैनत्व एवं अनेकान्त-तत्व का घातक पाता हूँ; और जैन के अगुआ वा समाज के कर्णधारों को ही अनेकान्त के विपरीत प्ररूपक वा अनेकान्ताभास के गर्त में हठ रूप से पड़े देखकर मेरी अब तक यही धारणा रही है कि अनेकान्त वा जैनत्व नूतन परिष्कृत शरीर धारण करेगा जरूर परन्तु उसका क्षेत्र भारत नहीं किन्तु और ही कोई अपरिग्रह-वाद से शासित देश होगा।
अस्तु, अनेकान्तके शासनचक्रका उद्देश्य लेकर आपने जो झंडा उठाया है उसके लिए मैं आपको और अनेकान्त के जिज्ञासुओं को बधाई देता हूँ और प्रार्थनारूपभावना करता हूँ कि आपके द्वारा कोई ऐसा युगप्रधान प्रगट हो, अथवा आप ही स्वयं तद्रूप अन्तर्बाह्य विभतिसे सुसज्जित हों जिससे एकान्त हठ-शासनक साम्राज्य की पराजय हो, लोकोदारक विश्व-व्यापी अनेकान्त शासनकी व्यवस्था ऐसी दृढतासे स्थापित : हो कि चहुंओर कमसेकम षष्ट गुणस्थानीजीवों का धर्मशासन-काल मानवजातिके-नहीं नहीं जीवविकासके । इतिहास में मुख्य आदर्श प्राप्त करे, जिससे प्राणी मात्र का अक्षय्य कल्याण हो ।
इसके साथ यह भी निवेदन करदेना उचित समझता हूँ कि अब इस युग में सांख्य, न्याय, बौद्ध आदि : एकान्त दर्शनोंसे भनेकान्तबादका मुकाबिला नहीं है, आज ता माम्राज्यवाद, धनसत्तावाद, सैनिकसत्तावाद, गुरुडमवाद, एकमतवाद, बहुमतवाद, भाववाद, भेषवाद, इत्यादि भिन्न२ जीवित एकान्तवादसे अनेकान्तका संघर्षण है। इसी संघर्षण के लिए गान्धीवाद, लेनिनवाद, ममोलिनीवाद, आदि कतिपय एकान्त पक्षीय : नवीन मिथ्यात्व प्रबल बेगसे अपना चक्र चला रहे हैं। .........। ___अतः इस युग के समन्तभद्र वा उनके अनुयायियोंका कर्तव्यपथ तथा कर्म उक्त नव-जात मिथ्यात्वोंको अनेकान्त अर्थात् नयमाला में गूंथकर प्रगट करना होगा, न कि भूतमें गड़े हुए उन मिथ्यादर्शनो को कि जिनके लिए एक जैनाचार्यने कहा था कि षड्दर्शन पशुप्रामको जैनवाटिकामें चराने ले जारहा हूँ। महावीरको प्रादर्शअनेकान्त-व्यवहारी अनुभव करने वालों का मुख्य कर्तव्य है कि वे कटिबद्ध होकर जीवों को और प्रथमतः भारतीयोंको माया-महत्व-चादसे बचाकर यथार्थ मोक्षवाद तथा स्वराज्य का आग्रह-रहित उपदेशदें।और यह पुण्यकार्य उन्हीं जीवों से सम्पादित होगा जिनका प्रात्म-शासन शुद्ध शासनशून्य वीतरागी हो चुका हो ।
• अन्त में आप के प्रशस्त उद्योग में सफलता की भावना करता हुआ अजमेर ।
पापका चिरमुमुक्षु बन्धु २१-१-३० ।
भर्जुनलाल सेठी
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