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अनकान्त
वर्ष १, किरण३ कथाः*' आदि सूत्रों में शुक नामक परिव्राजक श्रादि लेखकी १५ वीं पंक्तिमें "अरहतनिसीदीयासमीपे" भिन्न भिन्न व्यक्तियों थावञ्चापुत्र आदि मुनियों को ये का "अहंत की निषीदी(स्तुप) के पास" ऐसा अर्थ प्रश्न पूछती हैं।
किया गया है-अर्थान् 'निसीदिया' शब्द का अर्थ ___आचार्य अभयदेव ने उपर्युक्त सूत्र की टीकामें 'स्तृप' किया है और १४ वीं पंक्तिमें इसी शब्द का 'जवणिज्ज' का संक्षिप्र अर्थ इस प्रकार लिखा है- भिन्न अर्थ क्यों किया जाता है ? इसका समाधान यह
'यापनीय' मांसाध्वनि गच्छतां प्रयोजक है कि- श्वेताम्बर जैनसम्प्रदाय के प्रन्थों में 'निसीइन्द्रियादिवश्यतारूपो धर्मः॥
हिया' या निसेहिया' शब्द बहुत जगहों पर भिन्न भिन्न
अर्थमें प्रयोजित किया गया है-भगवतीमूत्र सटीक पत्र ७५९ ।
__ णिसीडिया स्त्री० [निशीथिका] १ स्वाध्याय-भूमि इस लेखमें जिन शास्त्रीय पाठों का उल्लेख किया ,
अध्ययनस्थान, ( आचारांग २-२-२)। २ थोड़े गया है वे मभी श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के प्रन्थों
समय के लिये उपात्तस्थान, (भगवती १४-१०)। में पाठ हैं । दिगम्बर जैनसम्प्रदाय के गन्थों में से
आचारांग सत्रका एक अध्ययन (श्राचा०२-२-२)। "कायनिसीदीयाय यापभावकेहि" अंशके साथ मिसीहिया स्त्री० [ नैषेधिकी] १ स्वाध्यायभुमि, तुलना की जाय ऐसे पाठ है या नहीं यह जबतक मैंने (समवायांग पत्र ४०)। २ पापक्रियाका त्याग,(प्रतिक्रमदिगम्बर साहित्यका अभ्यन नहीं किया है तब तक णसत्र)। ३ व्यापारांतरके निषेधरूप सामाचारीमैं नहीं कह मकता हूँ। और न्याय-व्याकरणतीर्थ श्राचार, (ठाणांगसत्र १० पत्र ४९९)। ४ मुक्ति मोक्ष। पं० श्रीहरगोविंददास कृत 'पाइअसहमहण्णवो' आदि ५ श्मशानभूमि, तीर्थकर या मुनिके निर्वाण का स्थान, कोशों के जैसा कोई दिगम्बर साहित्य का कोश भी स्तप, समाधि, ( वसुदेवहिण्डि पत्र २६४-३०)। नहीं है कि जिसके द्वारा मेरे जैसा अल्पाभ्यासी भी ६ बैठने का स्थान । ७ नितम्बद्वारके समीप का भाग निर्णय कर सके । दिगम्बर सम्प्रदायके साहित्यके वि- (राज प्रश्नीय सत्र ) । ८ शरीर, ९ वसतिशिष्ट अभ्यासी पं०श्रीनाथरामजीप्रेमी और 'अनेकान्त' साधओं के रहने का स्थान, १० स्थण्डिल-निर्जीव पत्रके सम्पादक बाबू जुगलकिशोरजी मुख्तार महाशय भूमि, ( आवश्यक चूर्णी)।* के द्वारा मुझे समाचार मिले हैं कि-ऊपर लिखेपाठोंके -पाइअसहमहण्णवो पत्र ५१२-१३ ॥ साथ तुलना की जाय ऐसा कोई पाठ दिगम्बर सम्प्र- अंत में इस लेखको समान करते हुए मुझे कहना दायके ग्रन्थोंमें अभी तक देखनेमें नहीं आया है। चाहिये कि- प्रस्तुत लेखका कलेवर केवल यहाँ पर प्रश्न हो सकताहै कि-खारवेल-शिला- शास्त्रीय पाठोंसे ही बढ गया है, किन्तु शिलालेखके
- अंश की तुलना और इसके अर्थ को स्पष्ट करने के *देखो पत्र १०६-७.
लिये यह अनिवार्य है। x दिगम्बर समाजके लिये निःसन्देह यह एक बड़ी हो लज्जा का विषय है। उसके श्रीमानों तथा विद्वानों का ऐसे उपयोगी कार्य की तरफ ध्यान ही नहीं है।
-सम्पादक
* इन प्रोंमें कुछ नये अर्थ भी शामिल किये गये हैं।