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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ३ सम्बन्धमें बहुत सी भ्रान्त कल्पनाएँ प्रचलित हो गयी जगत इसी लहरके प्रभावमें दिखलाई देता है । यदि हैं । ऐसा करते हुए भी हमें इस बातका ध्यान रखना पाश्चात्य सभ्यताके मूल सिद्धान्तोंपर दृष्टि डाली जाय पड़ेगा कि लेख बहुत अधिक न बढ़ जाय, क्योंकि लेख तो वे इन नास्तिक दर्शनोंकी ही मालूम छाया होते हैं । अधिक बढ़ जानेसे इस बातका भय है कि पाठक वृन्द भारतमें भी स्वामी दयानंद सरस्वतीने इनसे बहुत कुछ बालसका अनुभव करने लगेंगे।
. कुछ सीखा है। श्राद्धआदिका निषेध यहींसे शुरू होता जिन दर्शनोंपर आज हम विचार करेंगे वे हैं (१) है,जिसे स्वामीजीने अपना रंग देकर अपनाया है। उन्हो चार्वाक (२) बौद्ध और (३) जैन-दर्शन । ने अन्यधर्म-सम्प्रदायोंका खण्डन करते हुए जो युक्तियाँ . चार्वाक-दर्शन
दी हैं उन्हें चार्वाकदर्शनके प्रकाशमें देखिये तो कुछ इस दर्शनका दूसरा नाम नास्तिक दर्शन भी है। भी अन्तर दिखलाई न देगा। कारण ? यह इस लोक तथा ऐहिक पदार्थोंको छोड़कर इस चार्वाक-दर्शनके अनुसार चलने वाले प्रत्यक्ष जीव ईश्वर आदि किसी भी पदार्थकोस्वीकार नहीं करता प्रमाणको छोड़कर और कुछ भी नहीं मानते । यूरोपमें है। इसके विचारमें, शुभाशुभ कर्मोंका कर्ता, शुभाशुभ प्रायः सर्वत्र यही भाव था। पर अब कुछ दिनोंसे उनमें फलोंका भोक्ता, देह को छोड़ देहान्तरका ग्रहण करने ऐसे लोग भी पैदा हो गये हैं जो आत्माको शरीरसे वाला, कोई भी नहीं है।
भिन्न मानने लगे हैं, किन्तु उनकी संख्या अति न्यून पथिवी, तेज,वाय तथा जलके स्वाभाविक संयोग- है। नाना प्रकारके भोगोंको ही परम पुरुषार्थ मानने विशेषसे बने हुए शरीरमें इसी संयोगकी महिमासे चैतन्य वाले इन नास्तिकोंने भारतमें भयंकर हल चल पैदा कर पैदा हो जाता है, जिससे यह शरीर हर तरहकी हरकतें दी थी। दया तो इनके दिलों में नाम मात्र को भी नहीं करने लग जाता है। जैसे कई एक खास वस्तुओंके थी।अपने भोग-विलासके लिये ये भारीसे भारी जीवसंयोगसे शराबमें नशा पैदा हो जाता है, उसी तरह हत्या करनेमें कुछ भी नहीं हिचकते थे। नशीली शराब ये लोग भूतोंके संयोगविशेषसे चैतन्यको पैदा हुआ की लाल लाल बोतलें, इनमें से हर एकके विलासग्रह समझते हैं।
की शोभा बढ़ाया करती थीं। स्वंग नरक भी कोई लोकान्तर नहीं होते,भोगोंकी दुर्भाग्यसे देशमें कुछ संप्रदाय भी ऐसे पैदा हो गये प्राप्ति स्वंग तथा कष्टकी प्राप्ति को ही ये नरक कहते हैं। थे जो तान्त्रिक होनेका दम भरते हुए देवताओंके नाम ____ मोक्षप्रामिको इनकी बराबर सुगम दूसरा कोई पर उन सब कामोंको करते थे जिन्हें पूर्वोक्त नास्तिक नहीं समझता; ये मरे और मुक्त हुए । राजाके सिवा भोगोंके नाम पर निराबाध करते चले जारहे थे। कोई अदृष्ट ईश्वर नहीं । अतएव वैदिक कर्म कलापके कोई मातेश्वरी महामायाके मनाने के नाम पर पंच सिवा ऐसे वैसे लोगोंकी जीविका और कुछ नहीं मकारको सेवन करते हुए कृतकृत्य होनेका गर्व करता है (?)। जब इन्हें ईश्वरकी ही सत्ता स्वीकार नहीं है, था, तो कोई वटुक भैरवकानाम लेकर शराबकी बोतलें तब वेदोंका तो जिक्र ही क्या है। उन्हें धूर्त, भाण्ड, चढाने लग गया था। मांसखोरों की तो कोई गणना निशाचर जिस किसीका भी बनाया हुआ कह दें, सो ही नहीं थी। जिधर देखो उधर वे ही झंडके मुंड थोड़ा है।
नजर आते थे। यह हाल उन लोगोंका था जो वेदके ___ जहाँ तक समझा जाता है, चार्वाकदर्शनकी रचना अनुशासनसे अपनेको सर्वथा मुक्त समझते थे। उस समय हुई थी जब महाभारतके सर्वनाशी युद्धके चारों दिशाओंमें घोर अज्ञानका साम्राज्य फैला पश्चात् देशमें एक विचित्र लहर फैल रही थी। उसीके हुआ था, लोग आसुरी प्रकृतिमें निमग्न हो चुके थे। परिणामस्वरूप अपनी पहली सभी बातोंकी प्रतिक्रिया ऐसे समय भगवान बुद्धदेवका अवतार हुआ, की एक लहरसी देशमें बह गयीथी।आज भी पाश्चात्य जिन्होंने अपने उपदेशके द्वारा विश्वकी रक्षा की।