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फाल्गुन, वीरनि० सं० २४५६]
पुरानी बातों की बाज
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पुरानी बातों की खोज
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भी हो चुका है, और इस उसकी अपेक्षा ऐसे ही महाघ एक और 'भगवती आराधना' (बहुमूल्य) बतलाया है जैसे कि दूध से निकला हुआ 'भगवती आराधना' नामका जो प्राचीन ग्रंथ जैन
घी । ११ वीं शताब्दीमें इस दूसरे 'भगवती माराधना'
ग्रंथकी रचना हो जाने के कारण ही पं०माशाधरजीने ममाजमें प्रसिद्ध है और जिसका परिचय 'अनेकान्त'
पहले प्रन्थकी टीका लिखते हुए उसे 'मूलाराधना' की तीसरी किरणसे पाठक पढ़ रहे हैं उससे भिन्न एक
नाम दिया है और अपनी टीका(विवरण)का नाम 'मूऔर भी 'भगवती आराधना' नाम का प्रन्य है । यह
लाराधना-दर्पण' रकबाहै, ऐसा मालूम होता है। प्रस्तु; ग्रंथ प्राकृत भाषामें नहीं किन्तु संस्कृत भाषा में है और
इस प्रन्थकी एक प्रति ऐलक पन्नालाल सरस्वतीभवन, इम समाजके प्रसिद्ध विद्वान् अमितगति प्राचार्य नेरचा
बम्बई में मौजद है, जिसकी पत्र संख्या ८१ है परंतु है। ये प्राचार्य माधवसेनके शिष्य और नेमिषेणाचार्य
उममें पहला पत्र नहीं है। इसी से मंगलाचरण श्रादि के प्रशिष्य हैं और इस लिये ११वीं शताब्दी के विद्वान
नि का कुछ हाल मालूम नहीं हो सका । यह प्रति बहुत वही अमितगति है जो धर्मपरीक्षा, उपासकाचार, अशद्ध है और जिस ग्रंथप्रति परमं उतारी गई है, उसे मुभाषितरत्नसंदोह आदि ग्रंथों के प्रसिद्ध रचयिता हैं। वि०सं० १५६८ की लिखी हुई बतलाया है । प्रत्यके इनके रचे हुए अभी तक जितने ग्रंथ उपलब्ध हुए थे अन्तिम भागके नामादिक सचक कुछ पा इस प्रकार अथवा सुहबर पं०नाथूरामजी प्रेमी-द्वारा विद्वदलमाला हैं:में इनके और जितने प्रन्योंकी सूचना दी गई थी उन
अाराधना भगवती कथिता स्वशकचा, मबसे यह एक जुश ही मन्थ है । इसे प्राचार्य महोदय
चिन्तामणितिरतु बुधचिन्तितानि । ने बड़े उद्यमके साथ चार महीने में बना कर समाप्त
मानहाय जन्मभलषि तरितुं तर, किया है। परंतु कौनसे संवतमें बनाकर समाप्त किया,
भव्यात्मनां गुणवती ददा समापि।।१२।। यह मन्थप्रति परसे मालूम नहीं हो सका। हाँ, इतना शहर मालूम हुभा है कि इसकी रचना उन्होंने अपने
पापवसेनोऽअनि मुनिनायो पहले के बने हुए किमी जिनागम पर से की है, जो
सिन-माया-मदन-कदर्षः। संभवतः वही प्राचीन 'भपवती भाराधना' जान पड़ता
तस्य गरिष्टो गुरुरिव शिष्यहै जो प्राकृत भाषामें निवडण्याप कर प्रकाशित स्मतविचार-परण-मनीष ।। १७॥