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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ४ "णासदि बुद्धी-बुद्धिनश्यति, आहार- इस महत्वपूर्ण टीकाके प्रकाशितहोनेकी बहुत बड़ी लम्पटतया युक्तायुक्तविवेकाकरणात् । कस्य ? आवश्यकता है। यदि कोई जिनवाणी-भक्त धनी सज्जन जिहावशस्य । तीक्ष्णाऽपि सती पूर्व बद्धिः कुण्ठा लगभग तीन हजार रुपये खर्च करनेको तय्यार हों तो भवति । रसरागमलोपलता अर्थयाथात्म्यं न यह कार्य सम्पादित हो सकता है। पश्यंतीति पारशीकल्केशलग्न [लिंग] इव भवति
२-मूलाराधनादर्पण पुरुषोऽनात्मवशः।" (३) गाथा नं० १९७५ की बाबत पं० सदासुखजी ने ।
__इसके कर्ता सुप्रसिद्ध पण्डितप्रवर माशाधरजी हैं,
जिनके अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं और जिनके समय जो यह लिखा है कि " इस गाथाका अर्थ हमारे
आदिके विषयमें काफी लिखा जा चुका है । इस टीका जाननेमें नहीं आया वा टीकाकार हू नहीं लिख्या
की दो अपूर्ण प्रतियाँ कारंजा के सरस्वती भंडार में हैं है।" वह भी इसी टीकासे सम्बंध रखता है।
और उन दोनोंको मिलानेसे एक प्रन्थ पूरा होजाना है। क्योंकि इस टीकामें वस्तुतः इस गाथाका कुछ भी
एक प्रति २२९ पत्रोंकी है जिसमें पहलेसे पांचवें नक अर्थ नहीं दिया है। (४) इसी विनयोदया टीकाके अन्त मंगलके "नमः
आश्वास हैं और दूसरी १३४ पत्रों की है जिसमें सफलतत्वार्थ" आदि जो दो श्लोक ऊपर दिये
छठे से लेकर आठवें आश्वासतक हैं । अन्तप्रशस्तिका जा चुके हैं उन्हें भी पं० सदासुखजीने अपनी
एक पत्र नहीं है । पं० श्राशाधरजी विक्रम की तेरहवीं बचनिकाके अन्तमें ज्योंका त्यों उद्धृत किया है।
शताब्दी में हुए हैं और चौदहवींके प्रारंभ तक रहे हैं।
इस टीकाके प्रारंभ और अन्तके अंश इसप्रकार हैंजान पड़ता है इस टीकामें 'उपकल्पयन्ति' का
प्रारंभ'पानयन्ति' अर्थ जैसी कुछ ऐसी बातें होने के कारण ही जो पं० सदासुखजी जैसे कट्टर तेरहपंथी विद्वानके
ॐ नमः सिद्धभ्यः। गले नहीं उतर सकतीं उन्हें इसमें दिगम्बरत्वका नत्त्वाहतः प्रबोधाय मुग्धानां विषणोम्यहं । प्रभाव नजर पाया है और इसी लिये उन्होंने इसको श्रीमूलाराधनागृढपदान्याशापरोऽर्थतः ॥ श्वेताम्बरत्व का सर्टिफिकेट दे दिया है। अन्यथा, यह तत्रादावेदं युगीनश्रमणगणोपयुज्यमान-प्रवचनटीका प्राचीन दिगम्बराचार्यप्रणीत है, इसमें कुछ भी निष्पन्दामृतमाधुर्यः तत्र भगवान्शिवकोट्यासंदेह नहीं है ।
* देखो मेरी लिखी हुई विद्रतरत्नमालाका पतिप्रकर. माशाx गाथा . ४२७ की टीका प.सदासुखजीने जा यह र शीर्षक विस्तृत लेख। लिखा है कि-"इस प्रपको टीकाका कर्ता श्वेताम्बर है। इस ही
ईके ऐलक पनालालजी सरस्वतीमका में जो प्रति कारंजा गापाके पर्यमें बस पास कम्बलादि पो हैक है ताते प्रमाल से लिखवाकर मंगाई गई है, जान पक्ता है किसी ५ मारवानाही कितना भ्रमपूर्ण है, इसे बतलाने के लिये पाठकोंको सबाली अपूर्व प्रतिसे नात की गई है और इसीलिए उसमें ५ मागावाकी पूरी टीकाचा अलग ही परिचय दिया जायगा । टीका वास होते हुए भी अन्तमें सम्पूर्ण टीका लिख दिया गया है। भवन बहुत बड़ी तथा महत्वपूर्ण है और इसलिये उसका एक जुदाती के संचालकोंको चाहिए किये शेषकी तीन भावासोंकी टीकाको मौर
भी माल करके भगालें जिससे अन्य सम्पूर्ण हो जाय ।