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अनकान्त
[वर्ष ५, किरण ५ REEEKKERMEREKKERMEREKA तौलवदेशीय प्राचीन जैनमंदिर ।
लक-श्री०पं० लोकनाथजी शास्त्री मूबिद्री
क्षिण कर्नाटकमें जैनधर्मकी प्राचीनता और जैन- बंगर, (३) अलदंगडी के अजिलर, (५) मूल्कीके १ मंदिगेका विपय इतिहास-प्रेमियोंके लिये जितना मेवंतर इयादि। अत्यावश्यक है उतना ही वह गहन तथा रहस्यपूर्ण भी
इस दक्षिण तोलवदेशके उक्त प्रसिद्ध राजाओंने है, इसे इतिहास-खोजियोंको सदा ध्यानमें रखना
यहाँ पर बहुतमे जैनमंदिर बनवाये हैं। प्राचीन और चाहिये। इस देशमें घरकी आम बोचचालकी भाषा ।
अर्वाचीन मब मिला कर मंदिरोंकी संख्या यहाँ १८० तुलु होनेके कारण इसको 'तुलुदेश' या 'तौलवदेश'
पाई जाती है और उसकी तफ़सील यह है कि मूडकहते हैं और व्यावाहारिक भाषा कन्नड होनेसे इसका विदीमें १८, कार्कलमें १८, वेणरने ८, मूल्की होसंग'कर्नाटक' देश भी कहा जाता है।
डीमें ८, संगीतपुर ( हाडुवल्ली ) ९. गेरोप्पे में ४, यह कर्नाटक देश किसी समय कांचीके राज्यमें दक्षिणकनाडा के अन्य अन्य प्रांतोंमें मब मिल कर शामिल था, जिसकी पुरानी राजधानी बीजापुर जिले १०४ और अभी नये बने हुए मंदिर ११, इस प्रकार के अन्तर्गत बादामपुर (बादामी) थी। उसके पश्चात इम देशमें कुल १८० जैन मंदिर थे । इनमें से (१) उत्तर कनाडामें स्थित बनवामी के प्राचीन कदंब नेरबंडिहोले, (२) मोगर, (३) देशील (४) शीराडि राजाओंने इम पर राज्य किया। और छठी शताब्दीके (५) येणुगल्ल (६) कन्नर पाडी (७) पंज (८) चेकंगडि करीब यह देश पूर्वीय चालुक्योंके अधिकारमें चला (९) बंडाडि (१०) कोंबार (११) नंदावर (१२) उञ्चिल गया । इस देशके राजा-महाराजाओंका धर्म जैनधर्म (१३) उल्लाल और (१४) मूल्की होमंगडी के ५ मंदिर था और इम धर्मका प्रभाव उम समय तक अक्षुण्ण ऐमे १८ मंदिर तो पूर्ण रूपसे नाशको प्राप्त हो गये हैं नथा अप्रतिहत बना रहा जब तक कि विष्णुवर्धन, और बाक़ी में से कितने ही जीर्ण शीर्ण अवस्थाको होयसाल, बल्लाल, जैनधर्मको त्याग कर वैष्णवधर्मी प्राप्त होरहे हैं । इन सब मंदिरोंको देखने तथा पुरातत्वनहीं बने थे। उनके वैष्णवधर्मी बनते ही स्थानीय जैन विषयक ग्वाज करनेसे इस बातका काकी पता लगता राजा-भैरसूड बायर स्वतंत्र होगये और उन्होंने ऐसा है कि यहाँ पर पहले जैनमतका कितना अधिक महत्व शासन जमाया कि जो अन्य मतियोंको विरुद्ध पड़ने तथा प्रभाव व्याप्त था और यहाँके जैनी कितने ज्यादा लगा। उनके प्राधीन चौटर, बंगर, अजिलर वगैरह श्रीमान थे। अस्तु; मेरी इच्छा है कि मैं 'अनेकान्त' के बहुतसे प्रसिद्धर राजा थे । वे जैन राजा अभी भी इस प्रेमी पाठकोंको इन मंदिरोंका कुछ ऐतिहासिक परिचय भांति प्रसिद्ध हैं, (१) मूडबिद्रीमें चौटर, (२) नंदावरके दूं। और इस लिये आज उनके सामने सबसे पहले