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पौष, वीर नि०सं०२४५६) तौ० दे० प्राचीन जैनमन्दिर
१०५ मूडबिद्रीके जैनमंदिरोंका संक्षिप्त इतिहासमात्र रक्खा -पुनःपुनः दर्शन करनेकी ।उत्कंठा बनी ही रहती है। जाता है । मूडबिद्री अतिशय क्षेत्रोंमें प्रसिद्ध है। और इस मंदिरमें शिलालेख भी है, जिस पर शकवर्ष ६३६ यहांके दर्शनार्थ हर साल प्रायः सभी देशोंके यात्रीगण में इस मंदिरको स्थानीय जैनपंचोंने बनवाया इस आया करते हैं, इससे यहाँ के मंदिरोंके इतिहासको बातका उल्लेख है । इसी गुरुबस्तिके बाहरके 'गद्दिगे' प्रकट करना और भी ज्यादा जरूरी है । और इसलिये मंडपको एक चोलसेट्ठीनामक स्थानीय श्रेष्ठीने बनवाया उसीका सबसे पहले यत्न किया जाता है। बादको था जिसका समय उसमें शक संवत् १५३७ ( सन् दृसरे मंदिरोंका भी क्रमशः परिचय दिया जायगा:- १६१५) दिया है । इस मंदिरकी लागत ६ करोडकी
गिनी जाती है। वह इन रलप्रतिमाओंको मिलाकर ही मुडबिद्रीके १८ मंदिर होगी । इम मंदिरकी दूसरी मंजिल पर एक वेदी है, मडबिद्री मंगलौर-शहरमे २२ मील है। यह उसमें भी कई अनर्घ्य प्रतिमाएँ विराजमान है । इसके प्राचीन जैन राजा चौटर वंशकी प्रसिद्ध नगरी थी। सिवाय, इस मंदिरके बीचमें भगत द्रव्यनिधि भी इस समय भी चौटर वंशके घराने वाले यहाँ पर करोडों रुपये की है, ऐसा कहते हैं। इसका कई वर्ष मौजूद हैं । उनको सरकारसे पेन्शन भी मिलती है। पहले श्रवणबेलुगुलके गुरुमहाराज भट्टारकजीने यहाँ पर बड़े भारी १८ मंदिर हैं । इस देशमें मंदिरको जीर्णोद्धार कराया था, इसीमे इमको : गुरुबस्ति' नाम 'बस्ति' कहते हैं । अतः 'बस्ति' शब्दम मंदिर ममझ मे पुकारन हैं । लेना चाहिये । इन मंदिरोंमें 'गुरुबस्ति' नामका मंदिर (२) हासबस्ति-इसका 'त्रिलोकचूडामणिबसदि' बहुत प्राचीन तथा करीब १००० वर्ष पहलेका है । इम तथा 'चन्द्रनाथमंदिर' भी कहते हैं । यह मंदिर भी में श्रीपार्श्वनाथ स्वामीकी कृष्ण पाषाणकी कायोत्सर्ग- करीब ६०० वर्षका पुराना है । भारतभरमें इसके मुकारूप प्रतिमा बहुत ही मनोज्ञ है । इसी मंदिरमें धवल, बलका जैनमंदिर नहीं ऐसा कहनेमें अत्युक्ति नहीं जयधवल, महाधवल नामके तीनों ग्रंथराज विराजमान होगी । इम मंदिरके भीतर बहुन बढ़िया खुदाई का हैं और साथ ही बहुत प्राचीन अनर्घ्य रलप्रतिमायें भी काम शिला पर है। यह मंदिर तीन खनका (तिमंजला) विराजमान हैं इसीसे इसको सिद्धान्त मंदिर' भी कहन है। इसमें १००० शिलामय म्तंभ हैं । इसलिये इमका हैं । इस मन्दिरमें कुल रत्नप्रतिमायें ३३ हैं। इनमें में 'माविर कंमद बमदी' भी कहते हैं । भैरादेवी नामक चाँदी, सुवर्ण, पन्ना, स्फटिकरत्न, नीलम, गरुडमणि, एक रानीनं एक मंडप बनवाया है, उसको 'भैरादेवीगोमेधिकरत्न, बैडूर्यमणि, माणिक्यरत्न, मोती, हीग, मंडप' के नामसे पुकारते हैं। उसके भीतरके खंभीमें मूंगा, पुष्पराग वगैरह रत्नोपरत्नोंकी प्रतिमाएँ तो ३२ बहुत ही चित्र-विचित्र बढिया काम किया हुआ है। हैं और बाकी एक प्रतिमा ताड़पत्रकी जड़की बनी हुई इस मंदिर मूर्तिभत विभवको देखनके लिये हजागे है, यों कुल ३३ हैं । ये प्रतिमाएँ आधा इंचसे लेकर ५ अन्यमती लोग भी हमेशा आया करते हैं। इसमें इंच तककी ऊँचाई की हैं और चतुर्थ कालकी कहलाती 'भैरादेवी-मंडप', 'चित्रादेवी-मंडप' 'नमस्कार-मंडप' हैं । इनका दर्शन करनेसे पानंदका पारावार नहीं रहता इत्यादि ६ खंड हैं। उक्त वंडोंके अन्न पर बहुत ही