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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ३ हैं बहुतरे, परन्तु एक तो उनका ऐसे उपयोगी कार्यों श्रीगालपुरदुर्गे श्रीपातिसाहि जला(ल)दीन अकबरसाहिकी ओर ध्यान नहीं, दूसरे उनकी शक्तिरूपी स्टीमका प्रवर्तमान x......... एतेषांमध्ये परमसुश्रावकअनुपयोगी छिद्रों द्वारा अपव्यय हो रहा है। यदि यह साधु श्रीटोडर जंबुस्वामिचरित्रं कारापितं लिखापितं अपव्यय रुक जाय और उम स्टीमका रुग्व उपयोगी च कर्मक्षयनिमितं ॥छ।। लिखितं गंगादासेन ।।" कार्यों की ओर फिर जाय तो सब कुछ हो सकता है. इससे यह ग्रन्थ लाटीसंहितासे ९-१० वर्ष पहले
और एक दिन वह आ सकता है जो समाजके सारेही का बना हुआ है। इसमें कुल १३ सर्ग हैं और मुख्यतया प्राचीन माहित्यका उद्धार हो जाय । दिगम्बर समाज अन्तिम केवली जम्बस्वामी तथा उनके प्रसाद से के धनिकों को सुद्धिकी प्राप्तिहा और वे भी इस विषय सन्मार्गमें लगने वाले विद्युञ्चर' की कथाका वर्णन है। में अपना कर्तव्य मममें यही इम ममय मेरी हार्दिक इसका पहला मर्ग 'कथामुखवर्णन' नामका १४७ पद्यों भावना है।
में समाप्त हुआ है और उसमें कथाके रचना-सम्बन्ध
___ को व्यक्त करते हुए कितनी ही ऐतिहासिक बातोंका कवि राजमल्लका एक और ग्रन्थ भी उल्लेख किया है। अकबर बादशाहकी बाबत लिखा
'कवि राजमल्ल और पंचाध्यायी'नामके निबन्ध* है कि उसने 'जज़िया' कर छोड़ दिया था और में मैंने कविमहोदयके तीन ग्रंथोंका परिचय दिया था- 'शराब' बन्द की थी । यथा :१ अध्यात्मकमलमार्तण्ड, २ लाटीसंहिता और ३ "मुमोच शुल्क त्वथ जेजियाऽभिधं पंचाध्यायी। उस वक्त तक ये ही ग्रन्थ उपलब्ध हुए स यावदंभोधरभूधराधरं ॥ २७ ।। थे। अब एक चौथे संस्कृत गन्थका और पता चला ततोऽपि मद्यं तदवद्यकारणं है, जिसका नाम है ' जम्बूम्वामिचरित' । यह ग्रन्थ- निवारयामास विदांवरः स हि ॥२६॥ प्रति देहली-मठकं कंचेके जैनमंदिर में मौजूद है, ___ आगरेमें उस समय अकबर बादशाहके एक खास बहुत कुछ जीर्ण-शीर्ण है-कितनी ही जगह काग़जकी अधिकारी ('सर्वाधिकारक्षमः') 'कृष्णामंगल चौधरी' टुकियाँ लगाकर उसकी रक्षा की गई है-उसी वक्तके नामके ठाकुर थे, जो 'अरजानीपुत्र' भी कहलाते थे करीब की लिखी हुई है जब कि इसकी रचना हुई थी और उनके आगे 'गढमल्लसाहु' नामके एक वैष्णवधर्मा
और उन्हीं साधु (साहु) टोडरके द्वारा लिखाई गई है वलम्बी दूसरे अधिकारी थे जो बड़े परोपकारी थे। जिन्होंने कविसे इसकी रचना कराई थी। गन्थकीरचना इस ग्रन्थकी रचना करने वाले टोडरसाहु इन दोनों के का समय अन्तमें विक्रम सं०१६३२ दिया है । यथाः- खास प्रीतिपात्र थे और उन्हें टकमालके कार्यमें दक्ष __ "श्रथ संवत्सरेम्मिन श्रीनपविक्रमादित्यगताब्द लिखा है - संवत् १६३२ वर्षे चैत्रसुदि ८ वासरे पुनर्वसुनक्षत्रं “तयोयोः प्रीतिरसामृतात्मकः • यह निबन्ध 'वीर' के तीसरे वर्षके सयुक्तांक २०१२-१३ में
म भाति नानायकसाग्दतकः।" और माणिकचन्द्रग्रन्थमालामें प्रकाशित होने वाली 'लाटीमहिता'के यहां मध्यमें साधु टोडरकी गुरुग्राम्नाय तथा कुटुम्बके नामामाधमें भी प्रकट हमा है।
दिकका उल्लेख किया है।