Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________ सुघाटीका स्था०५उ०३०४ बादर नीवविशेषनिरूपणम् 187 बेन्द्रियमुण्ड इत्युच्यते / एवं चक्षुरिन्द्रिय-मुण्डादिरपि बोध्य इवि / प्रकारान्तरेण पुनरपि पञ्चविधान् मुण्डानाह-क्रोधमुण्ड:-क्रोधस्य अपनयात् क्रोधे मुण्डः क्रोधेन वा मुण्ड इति 1 / एवं मानपुण्डो 2 मायामुण्डो 3 लोभमुण्डः 4 शिरोमुण्डश्च 5 बोध्य इति ॥मू० 3 // मुण्डनं च बादरजीवविशेषाणामेव भवतीति बादरजीव विशेषानाह मूलम्-अहेलोगे णं पंच बायरा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया 1 आउकाइयार वाउकाइया३वणसई काइया 4 ओराला तसा पाणा 5 // 1 // उद्दलोगे णं पंच बायरा पण्णत्ता, तं जहाएवं तं चेव / तिरियलोगे णं पंच बायरा पण्णत्ता, तं जहाएगिदिया जाय पंचिंदिया 3 // पंचविहा बायरतेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा-इंगाले 1 जाला 2 मुम्मुरे 3 अच्ची 4 इन्द्रिय से मुण्ड होता है-अर्थात् श्रोत्रेन्द्रिय के विषयभूत शब्दमें राग देष होने रूप भाव कोई 2 करता है, वह पुरुष ओत्रेन्द्रिय मुण्ड कहा जाता है, इसी प्रकार से चक्षु इन्द्रिय मुण्ड आदि भी समझ लेना चाहिये / इस द्वितीय प्रकारान्तर से भी मुण्ड पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-क्रोध मुण्ड, मान मुण्ड, माया मुण्ड, लोभ मुण्ड और शिरो मुण्ड है, जो क्रोध को हटा देताहै, क्रोध करने का त्याग कर देताहै, वह क्रोध मुण्डहै, इसी प्रकारसे मान मुण्ड आदि भी समझ लेना चाहिये।।मू०३॥ નના સંબંધથી પુરુષ પણ મુંડિત થાય છે. તે મુંડ (મુંડિત) ના પાંચ 54.2 46 // छ-(१) श्रोन्द्रिय मुंड, (2) यक्षुन्द्रिय मुंड, (3) प्राणेन्द्रिय मुंड, (4) २सन्द्रय भुड म२ (5) २५न्द्रय भु. જે શ્રોત્રેન્દ્રિયમાં મુંડ અથવા શ્રોત્રેન્દ્રિયની અપેક્ષાએ મુંડ અથવા શ્રોત્રેન્દ્રિયના વિષય રૂ૫ શબ્દમાં રાગદ્વેષથી રહિત હોય છે તેને શ્રોત્રેન્દ્રિય મંડ કહે છે. એ જ પ્રમાણે ચક્ષુરિન્દ્રિય મુંડ આદિ વિષે પણ સમજવું. भी शत 54 पांय ना भु 4aa छ-(१) अषभु, (2) मान , (3) भायाभु, (4) सालभु मन (5) शिरोभु. 2 मास डोधन 62 કરે છે-કોપને ત્યાગ કરે છે તેને કોધમુંડ કહે છે. એ જ પ્રમાણે માનભંડ आदि विष 55 सभा: // सू. 3 // श्री. स्थानांग सूत्र :04