Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 770
________________ फिर मोक्ष पथ नेता गुरू उन दिव्य सन्त सुजानको, हे भव्यजन भन भावसे, मुनि मदनलाल महानको ॥ ६ ॥ शमदम प्रशमाद्या, ये दुरापा गुणास्त्वां श्रयितुमिह यतन्ते, नो स्थलं ते लभन्ते । कथय पुनरुपायं, नामतस्त्वं स्थितस्तंसुमुनि मदनलालं, शुद्धभालं भजध्वम् ॥ ७ ॥ हिन्दी-- दुर्लभ प्रशम शमदमगुणादिक शुद्ध अति गुणवानको निज वास हित पाते नहीं हैं, योग्य सुखमय धामको । कह दो मुने ! वे क्या करें हा छोड़ के श्रीमानको, हे भव्यजन मज भावसे, मुनि मदनलाल महानको ॥७॥ तव मुनिवर ? शुद्धं दर्शनं स्वप्नमध्ये,___ भवतु करुणदृष्टि जर्जायतां सर्व संघे -। इति भविजन शुद्धा प्रार्थना यत्कृते नं, सुमुनि मदनलालं शुद्धभालं भजध्वम् ॥ ८ ॥ हिन्दीमुनिराज ! हमको स्वप्नमें भी, आपका दर्शन सदा, होता रहे हो करुणदृष्टी, संघके ऊपर सदा । है भव्य जनकी प्रार्थना, जिनके लिये विद्वानको, हे भव्यजन भज भावसे, मुनि मदनलाल महानको ॥८॥ घासीलालकृतं त्वेतदष्टकं भावतः पठेत् । यो नरः सततं भक्त्या सत्वरं स सुखी भवेत् ॥ ९॥ हिन्दी-- इस अष्टकको जो पढे, वरने मंगलमाल सदाकाल सुखसे रहे, कहते घासीलाल ॥९॥ श्री. स्थानांग सूत्र :०४

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