Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 667
________________ सुघा टीका स्था. सू. १८ चक्रवतिन एकेन्द्रिपंचेन्द्रियरत्नवर्णनम् ६५१ कारागारः ॥ ६॥ छविच्छेदः-करचरणनासाकोष्ठाद्यवयवकर्त्तनम् ॥ ७॥ परिभाषादयश्च वस्रो दण्डनीतयो भरतस्य काले समभवन् । तदुक्तम्" परिभाषणा उ पढमा मंडलबंधो पुण होइ विइया । चारग छपिछेदादि भरहस्य च उबिहा नीई ॥ १॥" छाया-परिभापणा तु प्रथमा मण्डलबन्धः पुनर्भवति द्वितीया । चारकश्छबिच्छेदादि भरतस्य चतुर्विधा नीतिः ॥ १ ॥ इति ।मु०१८।। मलमू-एगमेगस्स णं रन्नो चाउरंतचक्रवहिस्स सत्त एगि: दियरयणा पण्णत्ता, तं जहा-चकरयणे १, छत्तरयणे २, चम्मरयणे ३, दंडरयणे ४, असिरयणे ५, मणिरयणे ६, काकणि. रयणे ७ एगमेगस्स णं रन्नो चाउरंतचक्रवटिस्स सत्त पंचिं. दियरयणा पण्णत्ता, तं जहा-सेणावइरयणे १, गाहावइरयणे २, वड्डइरयणे ३ पुरोहियरयणे ४, इत्थीरयणे ५, आसरयणे ६, हत्थिरयणे ७॥ सू० १९ ॥ छाया-एकस्य खलु राज्ञश्चातुरन्तचक्रवर्तिनः सप्त एकेन्द्रियरत्नानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-चक्ररत्नम् १, छत्ररत्नम् २, चर्मरत्नम् ३, दण्डरत्नम् ४, असिएवं हाथ-पैर, नाक कान आदि अवयवोंका काट लेना सो यह छवि. च्छेद दण्ड है, ये परिभाषा आदि चार दण्डनीतियां भरतके काल में हुई हैं कहा भो है-" परिभासणाउ पढमा" इत्यादि । भरतकी मान्यतानुसार ये चार प्रकारकी नीतियां हैं-परिभाषणा मण्डलबन्ध २ चारक ३ और छविच्छेद ॥ सूत्र १८ ।। " एगमेगस्त णं रन्नो चउरंतचक्क नहिस्स" इत्यादि ॥ सूत्र १९ ॥ सूत्रार्थ-एक २ चातुरन्त चक्रवर्ती राजाके सात एकेन्द्रिय रत्न कहे गये (૭) અપરાધીને હાથ, પગ, કાન, નાક આદિ અવયવોને છેદી નાખવા तेनु नाम छविच्छे ४ छ. પરિભાષા આદિ છેલ્લી ચાર દંડનીતિઓ ભારતના કાળમાં પ્રચલિત થઈ ती. युं ५ छ है-"परिभासणाउ पढमा " ભરતની માન્યતા પ્રમાણે આ ચાર પ્રકારની દંડનીતિઓ છે– (१) ५२माषा, (२) म १५-ध, (3) या२४ मन (४) छविच्छे ॥ सू. १५ ॥ " एगमेगस्स णं रन्नो चउरंतचक्करदिस्स" त्यादि-(सू. १८) સૂત્રાર્થ–પ્રત્યેક ચાતુરન્ત ચક્રવર્તી રાજા પાસે સાત એકેન્દ્રિય રત્નો હોય છે. તે श्री. स्थानांग सूत्र :०४

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