Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 731
________________ सुघाटीका स्था० ७ सू० ४६ विनयस्वरूपनिरूपणम् ७१५ आभिनिवोधिकादिकं पञ्चविधं, तदेव विनयः । यद्वा-ज्ञानस्य विनयो भक्तिबहुमानादिकरणं तदुक्तम् " भत्ती बहुमाणो तह, तदिद्वत्थाण सम्मभावणया । पिहिगहणभासो वि य, एसो विणो निणाभिहिओ ॥ १॥" छाया-भक्तिबहुमानस्तथातद् दृष्टार्थानां सम्यग्भावनता। विधिग्रहणम् अभ्यासोऽपि च, एष विनयो जिनाभिहितः ॥ १ ॥ तथा-दर्शनविनयः-दर्शनं सम्यक्त यम् , नदेय विनयः, अथवा-दर्शनदर्शनिनोरभेदाद् दर्शनस्य-दर्शनगुणाधिकपुरुषस्य विनयः-शुश्रूषणाऽनाशातनारूपइति । तदुक्तम्विनय ज्ञान विनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय, मनोविनय, वचन. विनय, काय विनय, और लोकोपचार विनय के भेद से सात प्रकारका कहा गया है, इनमें पांच प्रकार का जो ज्ञान हैं-आभिनियोधिक ज्ञान, (मतिज्ञान)श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान-सो ज्ञान विनय इन्ही रूप होता है-अथवा इन पांच प्रकार के ज्ञानों का जो विनय करना है-भक्ति बहुमान आदि करना है-यह ज्ञानविनय हैकहा भी है-" भत्ती तह बहुमाणे इत्यादि । दर्शन नाम सम्यक्त्व का है, इस सम्यत्य का होना ही सम्यक्त्य विनय अथवा दर्शन विनयहै, अथवा-दर्शन और दर्शनयाले में अभेद करने से दर्शन का-दर्शन गुणाधिक पुरुष का-विनय करना-शूअषणा (सेवा)करना, उनकी आशातना नहीं करना यह दर्शन विनयहै कहा भीहै. (१) ज्ञानविनय, (२) शनपिनय, (3) यात्रिविनय, (४) मनोविनय, (५) पाविनय, (६) यविनय, मने (७) ५या२विनय.. જ્ઞાનવિનય પાંચ પ્રકારના જ્ઞાનરૂપ-એટલે કે આભિનિધિજ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન, અવધિજ્ઞાન, મન:પર્યવજ્ઞાન અને કેવળજ્ઞાન રૂપ-હોય છે. અથવા આ પાંચ પ્રકારના જ્ઞાનેને વિષય કરે-તેમના પ્રત્યે બહુમાન, ભક્તિભાવ આદિ राम तेनु नाम ज्ञानविनय छे. यु छ - " भत्ती तह बहुमाणा" यालि. દર્શન એટલે સમ્યક્ત્વ. આ સમ્યક્ત્વને સદ્ભાવ હવે તેનું નામ જ સભ્યત્વ વિનય અથવા દર્શનવિનય છે અથવા દર્શન અને દર્શનવાળામાં અભેદ માનીને દર્શનગુણાધિક પુરુષને વિનય કરો-તેની શુશ્રષા કરવી, તેની અશાતના ન કરવી તેનું નામ પણ દર્શનવિનય છે. કહ્યું પણ છે કે श्री. स्थानांग सूत्र :०४

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