Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 754
________________ स्थानाङ्गसूत्रे नोऽश्वमित्रानुयायिन इति ॥ ४ ॥ द्वै क्रियाः - एकस्मिन् समये क्रियाद्वयस्यानुभवो भवतीतिवादिनो गङ्गाचार्यानुयायिनः ॥ ५ ॥ त्रैराशिका:- त्रयश्च ते राशययेति त्रिराशयः = जीवाजीवरूपाः, तान् अभ्युपगच्छन्ति ये ते त्रैराशिकाः, जीवाजीव नो जीवेति राशित्रयवादिनः षडुलूकापरनाम करो हगुप्तमतानुसारिणः ॥ ६ ॥ तथा - अबद्धिकाः - स्पृष्टं जीवन कर्म न स्कन्धबन्धवबद्धमित्यबद्धं तदस्ति अभ्युपगम्यत्वेन येषां ते अवद्धिकाः स्पृष्टकर्मविपाकमरूपका गोष्ठामाहिलमतानुसारिण इति ॥ ७ ॥ एषां प्रवचननिहवानां धर्माचार्या जमालिप्रभृयो यथासंख्यमुन्नेयाः । एषां सप्तानां प्रवचननिवानां = प्रवचनापलापकानामुसमस्त वस्तु क्षणिक हैं- ऐसा कहने वाले जो हैं वे अश्वमित्रानुयायी हैं । द्वैकिय-- एक समय में क्रिया द्वय का अनुभव होता है ऐसा कहने वाले गङ्गाचार्य के अनुयायी हैं। " त्रैराशिक -- जीव, अजीव, और नो जीव नो अजीव इस प्रकार से तीन राशियाँ हैं, इन तीन राशियों को जो मानते हैं वे त्रैराशिक हैं । ये त्रैराशिक षडुलुक कि जिसका दूसरा नाम रोहगुप्त है के मतने अनुयायी हैं । अबद्धिक -- जीव से स्पृष्ट हुआ कर्म स्कन्ध की तरह बद्ध नहीं होता है ऐसी उनकी मान्यता है वे अवद्धिक हैं। ये स्पृष्ट कर्म के विपाक के प्ररूपक होते हैं, और गोष्ठामाहिल के मत के अनुयायी होते हैं, इन प्रवचन निह्नयों के क्रमशः धर्माचार्य जमालि १, तिष्यगुप्त२, आषाढाचार्य ३ अश्वमित्र ४ गङ्गाचार्य ५, षडुलूक- रोह्गुप्त ६ गोष्ठामाहिल७ हैं । માન્યતા ધરાવનારા અપમિત્રના અનુયાયીઓને સામુચ્છેદિક નિદ્દવ કહે છે. (4) ट्रैडिय निहप-भेड समयमां मे डियाना अनुभव थाय छे, भा પ્રકારની માન્યતા ધરાવનારા ગગાચાર્યના અનુયાયીઓને વૈક્રિય નિહવ કહે છે. (५) त्रैराशिक - लुप, भुव, भने नव नाममा अमरनी ત્રણ રાશિઓ છે, એવુ માનનારા ષડુલકનું ખીજું' નામ રાહત પણ આપવામાં આવ્યું છે. ७३८ 61 અતિક— જીવ વડે પૃષ્ટ થયેલું ક કન્યની જેમ અદ્ધ હતું નથી,” આ પ્રકારની જેમની માન્યતા છે તેમને અતિક કહે છે. તેઓ પૃષ્ટ કર્મના વિપાકના પ્રરૂપકા હોય છે. ગેાષ્ઠામાહિલના અનુયાયીએ આ પ્રકારના भत धरावे छे. આ સાતે પ્રવચન નિર્ણવાના ધર્માચાર્યાંનાં નામ અનુક્રમે આ પ્રમાણે छे- (१) भावि, (२) तिष्यगुप्त, (3) भाषादायार्य, (४) अश्वमित्र, (4) श्री स्थानांग सूत्र : ०४

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