Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 740
________________ ૭ર૪ स्थानाङ्गसूत्रे एवमग्रेऽपि, नवरं-स्थानम् ऊर्ध्वस्थानं कायोत्सर्गादि, निपदनम् उपवेशनम् , त्यग्यतनम् पार्श्वपरिवर्तनं-शयनमित्यर्थः, उल्लङ्घनम् कद्दमादेः सकृदतिक्रमणम् , पलङ्घन-तस्यैव पौनःपुन्येनातिकमणम्, मर्वेन्द्रिययोगयोजनता-सर्वाणिच तानीन्द्रियाणि चेति सर्वेन्द्रियाणि, तेषां योगा=व्यापाराः, यद्वा-इन्द्रियाणां योगा: व्यापारा इन्द्रिययोगाः, सर्वेच ते इन्द्रिययोगाः सन्द्रिययोगाः, तेषां योजनता-करणम् सर्वेन्द्रियाणां शुभव्यापार इत्यर्थः । एवमप्रशस्त-कायविनय भेदा अपि अनायुक्तविशेषणवत्तया व्याख्ये या इति । उक्तश्च प्रशस्तमनोवाकायविनयविषयेनता ७, इन में से उपयोगपूर्वक गमन करना यह आयुक्त गमनरूप कायविनय है, अबया-" आयुक्तगमन " यह एक पद है, इसका अर्थ है। प्रतिसंलीनयोग वाले ( इन्द्रियों को गुप्त करनेवाले का जो गमन है वह आयुक्त गमन है, १ इसी तरह से आगे भो आयुक्त शब्द का अर्थ समझ लेना चाहिये, स्थान शब्द का अर्थ है कायोत्सर्ग आदि करना-निषदन शब्द का अर्थ है बैठना त्वरवर्तन शब्द का अर्थ है करवट बदलना-सोना, उल्लंघन शब्द का अर्थ है-कर्दम आदि का एक बार उल्लंघन करना, प्रलंघन-शब्द का अर्थ है-कर्दम आदि का वारंवार उल्लंन करना तथा समस्त इन्द्रियों को शुभव्यापार में लगाना, यह लगाना, यह सर्वेन्द्रिय योग योजनता है, अप्रशस्त कायविनय के भेद भी अनायुक्त विशेषण लगाकर इसी तरह से व्याख्यात कर लेना चाहिये, प्रशस्त मन, वचन, एवं काय के विनय के विषय में ऐसा कहा गया है-" मणवइकायविणओ" इत्यादि ઉપગપૂર્વક ગમન કરવું તેનું નામ આયુક્ત ગમન રૂપ કાયવિનય છે. अथवा " आयुक्तगमन ( 41 मे ५६ छे. तेन। अथ मा प्रमाणे थाय छપ્રતિસંલીન ગવાળાનું ( ઈન્દ્રિયોને ગુપ્ત કરનારનું) જે ગમન છે તેનું નામ આયુક્તનમન છે. એ જ પ્રમાણે બીજા ભેદના અર્થ પણ સમજી લેવા. અહીં સ્થાન પદ કાર્યોત્સર્ગનું વાચક છે, નિષદન એટલે બેસવું “ત્વગુવર્તન” એટલે પડખું બદલવું અથવા સૂવું, “ઉલ્લંધન” એટલે કર્દમ આદિને એક વખત सागवा, " न" ४६भ माहिन पारपार माया , 'सन्द्रिय ચેગ એજનતા” એટલે સમસ્ત ઈન્દ્રિયોને શુભ વ્યાપારમાં પ્રવૃત્ત કરવી. અપ્રશસ્ત કાયમના પણ સાત ભેદ પડે છે. અહીં અનાયુક્ત વિશેષણ લગાડીને અનાયુક્ત ગમનરૂપ કાયવિનય આદિ ઉપર્યુક્ત સાત ભેદ સમજવા, પ્રશસ્ત મન, વચન અને કાયના વિનય વિષે એવું કહ્યું છે કે श्री. स्थानांग सूत्र :०४

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