Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 720
________________ ७०४ स्थानागसत्रे सहलारपाणताच्युताभिधेयानामौदीच्येन्द्राणाम् अनीकानि अनीकाधिपतयश्च बोध्याः । अनुमेवार्थ सूचयितुमाह-' एवं जाव अच्चु यस्सवि नेयव्वं ' इति । आनतारणौ देवलोको क्रमेण प्राणताच्युतेन्द्राधीनौ, अत एव चत्यारो दाक्षिणात्ये. न्द्रा इति ।। सू० ४३ ॥ सम्मति चमरेन्द्रायपीनपादातानीकाधिपत्यधोनपादात-श्रेणिसंख्याः पतिः श्रेणिस्थसैनिकसंख्याथ प्ररूपयितुमाह मूलम्-चमरस्त णं असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो दुमस्स पायत्ताणियाहिवइस्स सत्त कच्छाओ पण्णत्ताओ, तं जहा.. पढमा कच्छा जाव सत्तमा कच्छा । चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो दुमस्स पायत्ताणियाहियइस्स पढमाए कच्छाए च उसहिदेवसहस्सा पण्णत्ता । जावइया पढमा कच्छा तविगुणा दोचा कच्छा, तब्बिगुणा तच्चा कच्छा, तब्बिगुणा चउत्थी कच्छा, तब्बिगुणा पंचमी कच्छा, तबिगुणा छट्ठी कच्छा तब्बिगुणा सत्तमी कच्छा । एवं बलिस्त वि, गवरं मह. दुदुमो सट्रिदेवसाहस्सिओ, सेसं तं चेव । धरणस्स एवं चेव, सहस्रार, प्राणत, अच्युत, इन उत्तरदिशाके इन्द्रोंके सात२ अनीक और सात २ अनीकाधिपति जानना चाहिये, इसी बात को प्रकट करने के लिये सूत्रकारने " सेसं जहा पंचमट्ठाणे एवं जाव अच्चुयस्स वि ने. यवं" ऐसा यह सूत्रपाठ कहा है, आनत और आरण ये दो देवलोक क्रमशः प्राणत और अच्युत इन्द्र के आधीन हैं, इसलिये दाक्षिणात्येन्द्र चार कहे गये हैं । सू० ४३ ॥ મહેન્દ્ર, લાનતક, સહસ્ત્રાર પ્રાણુત, અયુત અને ઔદીચ્ચેન્દ્રોની સાત સેનાઓ અને સાત સેનાધિપતિઓનાં નામ ઈશાનેન્દ્રની સાત સેનાઓ અને सात सेनाधिपतिमान नाम प्रमाणे । सभा . मे पात सूत्रमारे " सेस जहा पंचमटाणे एवं जाव अच्चुयरस वि नेयव्यं " मा सूत्रमा २१ ५४८ ४१ छे. આનત અને પ્રાણત, આ બે દેવલોક અનુક્રમે પ્રાણત અને અમૃત ઈદ્રોને આધીન છે. તેથી જ દાક્ષિણાત્ય ઇન્દ્રો ચાર જ કહેવામાં આવ્યા છે. ૪૩ છે શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૪

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