Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 646
________________ ६३० छाया - अक्षरसमं १ पदसमं २ तालसमं ३ लयसमं ४ ग्रहसमम् ५ । निःश्वसितोच्छ्वसितसमं संचारसमं स्वराः सप्त ॥ १ ॥ इति । अयमर्थः - अक्षरसमम् - यत्र दीर्घेऽक्षरे दीर्घः स्वरः क्रियते, हस्ये ह्रस्वः, प्लुते लुतः सानुनासिके सानुनासिकः, तदक्षरसमय् ||१|| पदसमम् - यत् पदं = गीतपदं यत्र स्वरे आनुपाति भवति तत्तत्रैव यदा गीयते तदा पदसमं भवति ॥२॥ तालसमम् - यत्परस्पराभिहतहस्ततालस्वरानुसारिणा स्वरेण गीयते तत्तालसमम् ||३|| लयसमम् श्रङ्गदावद्यन्यतममयेनाङ्गुलीकोशेन समाहते तन्त्र्यादौ स्तस्वरप्रकारः स लयः, तमनुसरता स्वरेण यद् गीयते तद् लयसमम् ||४|| ग्रहसमम् प्रथमतो वंशतन्त्रपादिभियैः स्वरो गृहीतः स ग्रहः, तत्समेन स्वरेण - स्थानाङ्गसूत्रे अन्यत्र सात स्वर इस प्रकार से भी कहे गये हैं- जैसे - " अक्खरसमं १ पदसमं " इत्यादि । जिस गेप में दीर्घ अक्षर पर दीर्घ स्वर. हस्व अक्षर पर हस्व स्वर, प्लुत अक्षर पर प्लुत स्वर एवं सोनुनासिक अक्षर पर सानुनासिक स्वर किया जाता है, वह अक्षरसम स्वर है, जो गीतपद जिस स्वरमें अनुपाति होता है-गाने योग्य होता है, वह पदसम होता है, जो परस्पर अभिहत हस्ततालके स्वर के अनुसारी स्वरसे गाया जाता है, यह तालसम है, शृंगके बने हुए या लकड़ीके बने हुए किसी एक अङ्गुली कोश से तन्त्री आदि के बजाने पर जो स्वर निकलता है, वह लप है, उस लपको अनुसरण करनेवाले स्वर से जो गेय गाया जाता है, वह लयसम है ४. जो स्वर पहिले वंश तंत्री आदिसे मिला लिया અન્યત્ર સાત સ્વર આ પ્રમાણે પણ કહ્યા છે " अक्खरसमं पदसमं " इत्याहि (૧) જે ગેયમાં દીઘ અક્ષર પર દીર્ઘ સ્વર, હસ્વ અક્ષર પર હસ્વ સ્વર, દ્યુત અક્ષર પર વ્રુત સ્વર, અને સાનુનાસિક અક્ષર પર સાનુનાસિક સ્વર કરાય છે તે અક્ષર સમસ્વર ગીત કહેવાય છે. (૨) જે ગીતપદ જે સ્વરમાં અનુપાતિ હૈાય છે—ગાવા ચાગ્ય હોય છે તે સ્વરમાં ગવાય તે તેને પદસમ કહે છે. (૩) જે ગીત પરસ્પર અભિહત હસ્તતાલના સ્વરાનુસારી સૂરે ગાવામાં આવે છે, તે ગીતને તાલસમ કહે છે. श्री स्थानांग सूत्र : ०४ (૪) શિંગડામાંથી બનેલી અથવા લાકડાના બનેલા કાઇ એક અ'ગુલી કાશ વડે તત્રી આદિને વગાડવાથી જે સ્વર નીકળે છે તેને લય કહે છે. તે લયનું અનુસરણ કરનારા સ્વરથી જે ગીત ગવાય છે તેને લયસમ કહે છે.

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