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यरिसमंजमेवाडिणटस अवहेरियखखया गपामईन दियदेटिंपराइटसुपायजाइय मदाहरपैयणराण लेपर्यड महिपारखीण क्न तरकुसु मरेपरजियसमारे मायंदगाळ गादलियकार पदपावलिखीस मशेजाम तदिविमिरिसस पक्षतामपणणितदिनुपमा साखंडगा लियपाबाबलेवा परिसमिरस मखरामधर्मत किंकिरणिवसहिणिजाण्व १२२ गने करिसखहिरियदिबकवाळे पसर हिनखिरक्षिसाल तंसुणविसणश्चदि।
पुकदंतपंडितमा श्रिागत्यवनमा
रवीनतीक
उस मेलपाटि नगर में धरती पर भ्रमण करता हुआ, खलजनों की अवहेलना करनेवाला, गुणों से महान् कवि पुष्पदन्त कुछ ही दिनों में पहुँचा। दुर्गम और लम्बे पथ के कारण क्षीण, नवचन्द्र के समान शरीर से दुबला- पतला वह, जिसके आम्रवृक्ष के गुच्छों पर तोते इकट्ठे हो रहे हैं और जिसका पवन वृक्ष-कुसुमों के पराग से रंजित है ऐसे नन्दनवन में जैसे ही विश्राम करता है वैसे ही वहाँ दो आदमी आये। प्रणाम कर उन्होंने
इस प्रकार कहा- "हे पाप के अंश को नष्ट करनेवाले कवि खण्ड (पुष्पदन्त कवि), परिभ्रमण करते हुए भ्रमरों के शब्दों से गूंजते हुए इस एकान्त उपवन में तुम क्यों रहते हो?
हाथियों के स्वरों से दिशामण्डल को बहरा बना देनेवाले इस विशाल नगरवर में क्यों नहीं प्रवेश करते?" यह सुनकर अभिमानमेरु पुष्पदन्त कवि कहता है
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