________________
सरस्वती कऊपु देतयं डित
ลิส
रिठा
गांवदेति दोहपछि बडवालसँग जिणव यतिणिययसत्त्रलंगि चनमुदमुहवा सिणि सहजेोणि लीसेसदेउसा सोहळाणि इरक रकयकारिणि सुरकखापि वे विसरासदिपाणि धम्मागुसासणाद पुणुक मिणिरह्मणादेयचरि॥घ सुरासदो तिडया खाद होतिचा रुका लाई उपजति पसकई मुणिपय मणमा दोपंचविणाणशतं कदमिराणुपसि मु सिलवरिसेलवणादिगम विझलरंगला तो डिपिएचोड होतणउंसीस सुवणे कुरामुराया दिराउ जहि अडिगुमहाला वेदी पदिन्नधण कणापारु महि
जो बहुत से शास्त्रों के अर्थगौरव को धारण करती है, जो चौदह पूर्वो और बारह अंगों से युक्त है, जो जिनमुख से निकली हुई सप्तभंगी से सहित है, जो ब्रह्मा के मुख में निवास करनेवाली एवं शब्दयोनिजा है, जो निश्रेयस् की युक्ति और सौन्दर्य की भूमि हैं, जो दुःखों का क्षय करनेवाली और सुख की खदान है, ऐसी दिव्यवाणी सरस्वती देवी को प्रणाम कर मैं धर्मानुशासन के आनन्द से भरे हुए, तथा पाप से रहित नाभेय-चरित (आदिनाथ के चरित) का वर्णन करता हूँ।
Jain Education International
यत्ता - जिस ( आदिपुराण) चरित्र को सुनने से मनुष्य को सुखों के समूह और त्रिभुवन को क्षुब्ध करनेवाले सुन्दर पाँच कल्याण प्राप्त होते हैं, तथा पदार्थों को जाननेवाले प्रशस्त पाँचों ज्ञान उत्पन्न होते हैं ॥ २ ॥
३
मैं विश्व में सुन्दर प्रसिद्ध नाम महापुराण का सिद्धार्थ वर्ष में वर्णन करता हूँ। जहाँ (मेलपाटी नगर में ) चोलराजा के केशपाशवाले भ्रूभंग से भयंकर सिर को नष्ट करनेवाला, विश्व में एकमात्र सुन्दर राजाधिराज महानुभाव तुडिंग (कृष्ण तृतीय) राजा विद्यमान है। दोनों को प्रचुर स्वर्णसमूह देनेवाले ऐसे
For Private & Personal Use Only
www.jainlibno org