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प्रादिनाषकी
तिमा
पानामाश्रीवातराणादनमा एमाधवि हंता मोसिद्धाण गामोशायरियाग यामाटर वझायापामोलोएसवसाहप यसापचनर मुक्कारो सहपादपणास यो मंगलाणचा सूत्रे
स पटमहर्मगलंब नासिर - हिमहामणरंजा परमणिरंजण
वनकमलसरणेस सापणविविवि। धावणासणुणिरुवम सासणु रिसहणा
परमसहाळासुपरिखयरखियसूयतणे पंचसाधणुष्पमंदिवत पयडियसासयपर यनयखद परसमयसणियडायखहंसुह
ॐ नमः ॥ श्री वीतरागाय नमः॥ णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।
एसो पंचणमोक्कारो। सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं पढम हवइ मंगलं।
सन्धि १
ऋषभनाथ को मैं प्रणाम करता हूँ। जो अच्छी तरह परीक्षित हैं, जिन्होंने पृथ्वी-जलादि
पाँच महाभूतों के विस्तार की रक्षा की है, जिनका शरीर दिव्य और पाँच सौ धनुष ऊँचा सिद्धिरूपी वधू के मन का रंजन करनेवाले, अत्यन्त निरंजन (पापों से रहित), है, जिन्होंने शाश्वत पदरूपी (मोक्ष) नगर का पथ प्रकट किया है, जिन्होंने पर-मतों के विश्वरूपी कमल-सरोवर के सूर्य, विघ्नों का नाश करनेवाले, तथा अनुपम मत वाले एकान्त प्रमाणों का नाश किया है,
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