________________
सालगुणणिवासहरदेविंदधादिचासदरजाणिजियमंदरमहलय पविमुक्कदारमए गिमदलय सोहंतासायरमियविवर उहासियवहाणारयादिवर सुरणादाकरोडपपिया।
यमरपसारपहिडपला पावतरणिसमग्रहलादलयानरसहडम्मदसावलया हरिमल खमचिवलियमह अरहतमणतजर्सय द सिंहासूर्णवनयसदियाउडरियपरख किवंसचिमंडंडहिसरेपूरिसलवणहरीबयफलंसमिहादरी पुरण्वनिर्णय कामरण रुझियमाजरामरण दि यवस्यनियमोहयाउयसीमनिधमा
स्या पणमामिरवेंकयलकिरण महास. मयंसणिर्य किरणमा वसतिषणाद विसमविपिहाडानकोतपरावविहा सण जासतिळिमईलहलणाणसमितानि मलुसमादरमाणिहियमाणमायामयाह जिणसिहसरिसरदेसयाहं साइणविर चलोहदा पढ्दरिसिवनयसुरतरमहाशंकयहरिस्सरसयुमडरुचर्वति कोमलप्प याईलालादिति गारपरमसुवाष्पदेह कंतिलकडिलनदरह सालंकाराळंदण्डतिवा।
जो शुभशील और गुण-समूह के निवास-गृह हैं, जो देवों के द्वारा संस्तुत और दिशारूपी वस्त्र धारण करनेवाले किरणों से युक्त सूर्य जिन-भगवान् को मैं प्रणाम करता हूँ। (दिगम्बर) हैं, जिन्होंने अपनी कान्ति से मन्दराचल की मेखला को जीत लिया है, जिन्होंने हार और रत्न- घत्ता-और भी मैं (कवि पुष्पदन्त), जिन्होंने दुर्गति का नाश कर दिया है ऐसे, तथा क्रोधरूपी पाप मालाओं का परित्याग किया है, जो क्रीड़ारत श्रेष्ठ पक्षियों से युक्त अशोकवृक्ष से शोभित हैं, जिन्होंने अनेक का नाश करनेवाले सन्मतिनाथ को प्रणाम करता हूँ कि जिनके तीर्थकाल में ज्ञान से समृद्ध पवित्र सम्यग्दर्शन नरकरूपी बिलों को उखाड़ दिया है, जिनके चरण देवेन्द्रों के मुकुटों से घर्षित हैं, जिन्होंने प्रचुर प्रसादों से को मैंने प्राप्त किया॥१॥ प्रजाओं को आनन्दित किया है, जिनका प्रभामण्डल नवसूर्य की प्रभा के समान है और जो (प्रमाणहीन होने के कारण) अत्यन्त असह्य, मिथ्यागम के भावों का अन्त करनेवाले हैं, जिनके कारण इन्द्र के द्वारा बरसाये गये पुष्पों से आकाश पुष्पित और चित्रित है, जो अनन्त यशवाले, पाप से रहित अर्हत् हैं, सिंहासन और तीन मान, माया और मदरूपी पापों का नाश करनेवाले, अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं के, छत्रों से युक्त हैं, जो मिथ्यावादियों का नाश करनेवाले कृपालु तथा हितकारी हैं, जो दुन्दुभियों के स्वर से आकाश में देवताओं के मुखों को प्रणत दिखानेवाले, चरणकमलों में मैं कवि (पुष्पदन्त) प्रणाम करता हूँ। विश्वरूपी घर को आपूरित करनेवाले हैं, जिनके नख दुपहरिया पुष्पों के समान आरक्त हैं, जो कामदेव से जो (सरस्वती) हर्ष उत्पन्न करनेवाला सरस और मधुर बोलती हैं, जो अपने कोमलपदों (चरणों, पादों) से युद्ध जीत चुके हैं, जिन्होंने जन्म, जरा और मृत्यु को दूर से छोड़ दिया है, जो मल से रहित और वर दाता लीलापूर्वक चलती हैं, जो गम्भीर, प्रसन्न और सोने के समान शरीरवाली हैं, मानो कान्तिमयी कुटिल चन्द्रलेखा हैं, जो नियमों (व्रतों) के समूह में लीन हैं, जिन्होंने अपनी मोहरूपी भीषण रज को नष्ट कर दिया है, और हो; चन्द्रलेखा कान्ति से युक्त और कुटिल होती है, सरस्वती भी स्वर्ण देहवाली होने से कान्तिमयी एवं कुटिल जो मत्तासमय (मात्रा परिग्रह को शान्त करनेवाले - मात्रा समय छन्द) कहे जाते हैं, ऐसे केवलज्ञानरूपी (वक्रोक्ति संयुक्त) है। जो अलंकारों से युक्त और छन्द के द्वारा चलती है,
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org