________________ पदार्थ, (4) संभावित विग्रह (समास), (5) विचार और (6) दूषितसिद्धि (दोषपरिहार) इनमें नय-पद्धति भी प्रयुक्त होती है। उक्त छ: व्याख्यानों को अन्य नामों से भी अभिहित किया गया है। वे हैं- (1) संहिता, (2)पद, (3) पदार्थ, (4) पदविग्रह, (5) चालना, (6) प्रत्यवस्थान उक्त षड्विध व्याख्यान का विशेष विवरण इस प्रकार है : (1) सूत्रः सर्वप्रथम सूत्र का निर्दोष उच्चारण करना- इसे ही संहिता कहते हैं।" (2)पदः सूत्र को पदच्छेद सहित समझाना। वह पद किस श्रेणी में आता है- यह भी बताना। जैसेपद के दो प्रकार हैं- वाचक व द्योतक। पद के चार प्रकार भी हैं- नाम, निपात, उपसर्ग व आख्यात / इनमें सूत्रोक्त पद किस वर्ग का है- इसे भी बताना। (3) पदार्थ :- प्रत्येक पद का अर्थ बताना। अर्थ के अनेक भेद हो सकते हैं। जैसे- कारकवाच्य, समासवाच्य, तद्धितवाच्य और निरुक्तवाच्य आदि। इनमें से अर्थ किस स्वरूप का है, इसे भी स्पष्ट करना। इसके अलावा, जहां दृष्टांत अपेक्षित हो, उसे भी प्रस्तुत कर अर्थ को सुबोध्य बनाना। (4)सम्भावित विग्रहः पद यदि समस्त है, अर्थात् यदि वह कई पदों के समास से निर्मित है तो वहां यह भी स्पष्ट करना कि वहां कौन-सा समास है ताकि अभीष्ट अर्थ निर्णीत हो सके। इसे ही पद विग्रह भी कहते हैं। समास के अनिर्णय की स्थिति में अर्थ भी अनिर्णीत या संदिग्ध रहेगा, अतः विग्रह बताना आवश्यक है। 48. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा- 1002-1011. . 49. बृहवृत्ति, (वि. भा. गा. 1002) 50. संहिता च पदंचैव, पदार्थः पदविग्रहः। चालना प्रत्यवस्थानम्, व्याख्या तन्त्रस्य षड्विधा 11-इत्येतद् यदन्यत्र षड्विधं व्याख्यास्वरूपमुक्तम्, तदिह समर्थितम् इति (बृहद्वृत्ति, वि. भा. गाथा- 1007) / 51. व्याख्यानविधौ प्रस्तुते प्रथमं तावद् अस्खलितादिगुणोपेतं यथोक्तलक्षणयुक्तं सूत्रमुच्चारणीयम्। इयं चान्यत्र अस्खलितपदोच्चारणरूपा संहिता भण्यते (बृहवृत्ति, वि. भाष्य, गा.- 1002) / 52. पदानां विच्छेदो द्वितीयं व्याख्यानाङ्गम् (बृहवृत्ति, वि. भाष्य, गा. 1003-1005) / 53. वि. भाष्य, गाथा-1003-1005 एवं बृहवृत्ति। 54. बृहद्वृत्ति, वि. भाष्य, गाथा-1003-1005. 55. हेतुतोऽयं पदार्थोऽभिधीयते। तदनेन- 'आणागेज्झो अत्थो आणाए चेव सो कहेयव्वो। दिटुंतिओ दिटुंता कहणविहिविराहणा इहरा'-इत्ययमर्थः समर्थितो भवति (बृहवृत्ति, वि. भाष्य, गाथा-1003-1005)। 56. पदयोः पदानां वा अनेकार्थसम्भवे सति इष्टपदार्थनियमाय विच्छेदः क्रियते, स पदविग्रहः (बृहवृत्ति, वि. भाष्य, गाथा-1006)। ROpecRORRORROR [45] R ROR @@RB0Bce