________________
( २८ ) पश्चात्ताप न कर। मेरे वचनोंके अनुसार कार्य करनेसे कभी अशुभ नहीं होता। योग्य वैद्यकी योजनानुसार उपचार करने पर व्याधि कभी भी बाधा नहीं कर सकती । हे राजन् ! तूं यह न समझ कि, मेरा राज्य मुफ्तमें चला गया। अभी तूं बहुत समय तक सुखपूर्वक राज्य भोगेगा ।"
ज्योतिषीकी भांति तोतेके ऐसे वचन सुनकर मृगध्वजराजा अपना राज्य पुनः पाने की आशा करने लगा। इतने ही में बनमें लगी हुई अग्निके समान चारों तरफ फैलती हुई चतुरंगिणी सेना तितर-वितर आती देख भयसे मनमें विचार करने लगा कि--"जिसने मुझे इतनी देर तक दीनता उत्पन्न करी वही यह शत्रुकी सेना मुझे यहां आया जानकर निश्चय ही मेरा वध करनेके लिये दौडती आ रही है। अब मैं अकेला इस स्त्रीकी रक्षा कैसे करूं ? व इनसे किस तरह लडूं ? इस तरह विचार करते राजा 'किंकर्तव्यविमूढ' हो गया। इतनेमें "हे स्वामिन् ! जीते रहो, विजयी होवो, आपके सेवकोंको आज्ञा दो । महाराज! जिस प्रकार गया हुआ धन वापस मिलता है वैसे ही पुनः आज आपके दर्शन हुए । बालकके समान इन सेवकोंकी ओर प्रेम-दृष्टि से देखो । " इत्यादि वचन बोलनेवाली अपनी सेनाको देखकर मृगध्वज राजाको बडा आश्चर्य हुआ । पश्चात हर्षित होकर राजाने सैनिकोंसे पूछा कि, "तुम यहां किस प्रकार आये ? " सैनिकोंने उत्तर दिया कि, " हे प्रभो ! यहां पधारे