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सूत्रकृतांग 4000५१ : भाषाजात अध्ययन में भाषामची अगविचारों का वर्णन है। वस्वैषणा अध्ययन में मुनि संबंधी नियमों का उल्लेख है। भिक्षु-भिक्षुणी को उन्हीं वस्त्रों की याचना करना चाहिये जो फेंकने लायक हैं तथा जिनकी श्रमण, ब्राह्मण, वनीपक' आदि इच्छा नहीं करते । पात्रैषणा अध्ययन में पात्रसंबंधी नियमों का विधान है। अवग्रहप्रतिमा अध्ययन में उपाश्रयसंबंधी नियम बताये हैं | आम, गन्ना और लहसुन के भक्षण करने के संबंध में नियमों का विधान है। ये सात अध्ययन प्रथम चूलिका (परिशिष्ट) के अंतर्गत आते हैं। - दूसरी चूलिका में भी सात अध्ययन हैं । स्थान अध्ययन में स्थानसंबंधी, निशीथिका अध्ययन में स्वाध्याय करने के स्थानसंबंधी, और उच्चारण-प्रश्रवण अध्ययन में मल-मूत्र का त्याग करनेसंबंधी नियमों का विधान है। तत्पश्चात् शब्द, रूप और परक्रिया (कर्मबंधजनक क्रिया) संबंधी नियमों का विवेचन है। यदि कोई गृहस्थ साधु के पैर साफ़ करे, पैर में से काँटा निकाले, चोट लग जाने पर मलहम-पट्टी आदि करे तो साधु को सर्वथा उदासीन रहने का उपदेश है।
तीसरी चूलिका में दो अध्ययन हैं। भावना अध्ययन में महावीर के चरित्र और महाव्रत की पाँच भावनाओं का वर्णन है। महावीरचरित्र का उपयोग भद्रबाहु के कल्पसूत्र में किया गया है । विभुक्ति अध्ययन में मोक्ष का उपदेश है।
सूयगडंग (सूत्रकृतांग) सूत्रकृतांग को सूतगड, सुत्तकड अथवा सूयगडं नाम से भी कहा जाता है। स्वसमय और परसमय का भेद बताये जाने
१. आहार आदि के लोभी जो प्रिय भाषण आदि द्वारा भिक्षा माँगते हैं (पिंडनियुक्ति, ४४४-४४५), स्थानांग सूत्र (३२३ अ) में श्रमण, ब्राह्मण, कृपण, अतिथि और श्वान ये पाँच वनीपक बताये गये हैं।
२. नियुक्ति तथा शीलांक की टीका सहित आगमोदय समिति, बंबई द्वारा १९१७ में प्रकाशित । मुनि पुण्यविजयजी नियुक्ति और चूर्णी सहित इसका संपादन कर रहे हैं।