Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
View full book text
________________
३५
समयसुन्दर का जीवन-वृत्त जाते समय मार्ग में आई हुई 'पंचनदी' को पार करने के लिए नौका में बैठे। नाविक ने नौका खेना प्रारम्भ किया। जब नौका नदी के मध्य पहुँची, तब अचानक वर्षा शुरू हो गई
और भयंकर तूफान आ गया। नौका इधर-उधर डगमगाने लगी। मस्तूल टूट गया। सभी को अपने सिर पर मृत्यु नृत्य करती हुई दिखाई देने लगी। हाहाकार के सिवाय अन्य कोई उद्यम करने को नहीं बचा।
ऐसी विपदा में समयसुन्दर ने अपने एकमात्र इष्ट - जिनकुशलसूरि का निश्चल भाव से ध्यान किया। वे ध्यान-साधना में पूर्ण मग्न हो, उनकी आराधना में तल्लीन हो गये। फलस्वरूप इष्ट देवात्मा ने वहाँ पहुँचकर संकट दूर किया। कवि स्वयं इस चमत्कारपूर्ण घटना का उल्लेख करते हुए कहते हैं -
आयौ आयौ जी समरंता दादौ आयौ। संकट देख सेवक कुं सद्गुरु देराउर तें धायो जी ॥ १॥ दादा वरसे मेह नै रात अंधारी, वाय पिण सबलौ वायौ। पंच नदी हम बइठे बेड़ी, दरिये हो चित्त डरायौ जी ॥ २॥ दादा उच्छ भणी पहुँचावण आयो, खरतर संघ सवायो। समयसुन्दर कहे कुशल कुशल गुरु, परमानन्द सुख पायौ जी ॥३॥
जिनकुशलसूरि के प्रति कवि की अटूट श्रद्धा थी। इसी कारण रास-चौपाई आदि कृतियों में भी इनके प्रति भक्ति प्रकट हुई है।
सिन्ध प्रदेश से कविवर मारवाड़ आदि क्षेत्रों में होते हुए गुजरात प्रान्त में पहँचे। 'नववाड़शील-गीतम्'२ रचना के अनुसार वे वि० सं० १६७० में अहमदाबाद आते हैं
और वहीं पर वर्षावास करते हैं। वर्षाकाल में ही इनके प्रगुरु का देहावसान हो जाता है। सुदूर होने के कारण कवि उनके अंतिम दर्शन नहीं कर पाते हैं। इस बात का उन्हें अति दुःख होता है। अपने आन्तरिक भावों को वे 'आलीजा-गीतम्'३ नामक दो गीतों में व्यक्त करके उनके महान् उपकारों का स्मरण करते हैं तथा गीत के माध्यम से ही उन्हें श्रद्धा के पुण्य समर्पित करते हैं।
अहमदाबाद में चातुर्मास समाप्त होने पर कवि ने राजस्थान की ओर प्रयाण किया। 'अनुयोग-द्वार' एवं 'प्रश्नव्याकरण' नामक ग्रन्थों की पुष्पिका में प्राप्त सूचनाओं के आधार पर वि० सं० १६७१ का चातुर्मास कवि ने बीकानेर में किया था और ये दोनों ग्रन्थ उनके विद्वान् शिष्य जयकीर्ति को उन्होंने पठनार्थ दिये। इसके पश्चात् कवि लवेरा (जोधपुर) गये होंगे, क्योंकि गणि राजसोम ने अपने गुरु-गीत 'महोपाध्याय समयसुन्दर १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, दादा श्री जिनकुशलसूरि गीतम्, पृष्ठ ३५०-३५१ २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ४५८-४५९ ३. वही, पृष्ठ ३७४-३७८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org