Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व अपवाद रूप में उक्त मूल ध्वनि-रूप भी विद्यमान है। 'ओ' लिए 'अउ' और 'ए' के लिए 'अइ' रूप उपलब्ध होते हैं।
समयसुन्दर की हिन्दी में कुछ ध्वनि-परिवर्तन और विलक्षण प्रयोग भी दृष्टिगोचर होते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नीचे दिये जा रहे हैं - स्वर-परिवर्तन
समयसुन्दर के साहित्य में स्वर-परिवर्तन संबंधी विविध दिशाएँ हैं। जैसे - (क) स्वरागम
प्रमाद - परमाद', मार्ग > मारगरे, स्त्री - अस्त्री३
क्रिया > किरिया , सृजनहार > सरजनहारा', मृषावाद > मिरषावाद (ख) स्वरलोप
सेवा > सेव , हाथ > हथि, दुःख > दुख', माला > माल१० (ग) स्वर-संबंधी कुछ प्रमुख परिवर्तन द्रष्टव्य हैं -
ऋ> रि ऋद्धि > रिद्धि११, ऐ > जय > वयरागी१२ (घ) मात्रा-भेद : मात्रा की अनिवार्यता के कारण समयसुन्दर ने कहीं दीर्घ को ह्रस्व तथा
कहीं ह्रस्व को दीर्घ कर दिया है - १. दीर्घ को ह्रस्व - माता > मात१३
२. ह्रस्व को दीर्घ - उदार > उदारा१४ १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, क्रिया-प्रेरणा गीतम् (५) २. वही, क्रिया-प्रेरणा-गीतम् (८) ३. वही, कर्म गीतम् (१) ४. वही, प्रमाद-त्याग गीतम् (३) ५. वही, करतार गीतम् (५) ६. वही, नरकगति-प्राप्ति गीतम् (१) ७. वही, अनागत चौबीसी स्तवन् (५) ८. वही, नेमिनाथ फाग (७) ९. वही, ऐरवतक्षेत्र चतुर्विंशति गीतानि १०. वही, मृगावती-चरित्र चौपाई (१.२.७) ११. वही, श्री घंघाणी तीर्थ स्तवनम् (४) १२. वही, श्री नेमिनाथ-राजिमती स्तवनम् (१) १३. वही, चौबीसी, सुपार्श्वजिन स्तवनम् (२) १४. वही, मृगावती-चरित्र-चौपाई
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