Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
खण्ड क
१. रस- परिपाक
शब्द तथा अर्थ काव्य की काया है, तो रस उसकी आत्मा । जैसे आत्मशून्य काया निष्प्राण है, वैसे ही रसशून्य काव्य निष्प्राण है। रसात्मक वाक्य ही काव्य है । आचार्य विश्वनाथ ने 'वाक्यंरसात्मकं काव्यम् " कहकर इस सिद्धान्त का अत्यधिक महत्त्व पल्लवित किया है। भरत मुनि का निम्नलिखित सूत्र रस विवेचन का प्रस्थानबिन्दु है - 'तत्र विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः।'
रस की परिकल्पना अति सूक्ष्म और विलक्षण है, साथ ही अपरिभाष्य भी; क्योंकि यह आस्वाद्य और अनुभवमात्र है । तथापि यदि शब्दों में इसकी परिभाषा व्यक्त करना चाहें, तो कह सकते हैं कि वह आनन्दात्मक चित्तवृत्ति अथवा अनुभव, जो काव्य की चमत्कारपूर्ण अभिव्यक्ति के पठन या श्रवण के परिणाम स्वरूप विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी से युक्त स्थायीभावों के व्यञ्जित होने पर उत्पन्न होता है, रस है । आचार्य विश्वनाथ ने रस के स्वरूप का वर्णन करते हुए इसे सत्त्वगुण के उद्रेक की स्थिति में आविर्भूत, अखण्ड, स्वप्रकाशानन्द, चिन्मय, वेद्यान्तर - स्पर्श- शून्य, ब्रह्मानन्द-सहोदर ३ और लोकोत्तर - चमत्कारमय बतलाया है। उद्भट ने निम्नांकित नव प्रकार के रसों का कथन किया है -
श्रृंगार हास्यकरु णरौद्र वीरभयानकाः । बीभत्साद्भुतशान्ताश्च नव नाट्ये रसाः स्मृता ॥
यद्यपि मनुष्य के भाव अनन्त हैं, अतः रस भी अनन्त हैं, परन्तु अभिनव गुप्त ने 'एवं ते नवैव रसाः '६ उद्घोषित कर रस नव ही माने हैं, जिनमें अन्य समस्त रस निहित हो जाते हैं। सभी प्रकार की उद्भावनाओं को मिलाकर रसभेदों का सर्वयोग ३२ होता है, परन्तु प्राय: सर्वस्वीकृत रस उपर्युक्त ९ हैं । उक्त नव रसों के अतिरिक्त वात्सल्य और भक्ति आदि ऐसे रस हैं, जिन्हें अनेक आचार्यों ने स्वतन्त्र रस के रूप में स्वीकार किया है। इन सभी रसों का संक्षिप्त विवेचन हम कवि की रस- व्यञ्जना का अध्ययन करते समय प्रस्तुत करेंगे।
१. साहित्य - दर्पण
२. नाट्यशास्त्र, काव्यमाला ४२, पृष्ठ ९३
३. 'ब्रह्मानन्द सहोदर' के स्थान पर 'ब्रह्मास्वाद सहोदर' का उल्लेख भी उपलब्ध होता है । डॉ० नगेन्द्र ने 'रस सिद्धान्त' में 'ब्रह्मास्वाद सहोदर' की ही व्याख्या की है।
४. साहित्य-दर्पण (३.२.३)
५. काव्यालङ्कार-संग्रह ( ४.४) ६. हिन्दी अभिनवभारती, पृष्ठ ६४०
७. रस - सिद्धान्त, पृष्ठ २५२
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