Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व घटित करता है। वास्तव में ये सभी घटनाएँ शान्त रसोत्पादक हैं । अन्तत: उन्हीं से प्रेरित होकर राम ने लक्ष्मण का अन्त्येष्टि-संस्कार किया और विरक्त होकर अनगार बन गये । अनाथी मुनि ने राजा श्रेणिक से कहा कि ऐश्वर्य और परिवार से कोई सनाथ नहीं होता है, मेरे पास ये सब होते हुए भी मैं अनाथ था, मुझे ये रोगमुक्त नहीं कर पाये यह प्रसंग वास्तव में आत्म-प्रतीति करानेवाला है । २
संयम त्यागी अरहन्नक, पुत्र- विरह में पागल बनी अपनी माँ की करुण-दशा देखकर स्वयं को धिक्कारता है । यहाँ भी निर्वेद की प्राप्ति होती है । ३
भगवान् ऋषभदेव ने अपने ९८ पुत्रों को जो प्रतिबोध दिया, उससे उनका उद्वेग एवं क्षोभ पूर्णतः शान्त हो गया। भगवान् का यह उपदेश कवि ने ३२ पद्यों में निबद्ध किया है । सभी पद्य शान्तरस के अच्छे उदाहरण हैं ।
नटिनी के रूप पर आसक्त इलापुत्र एक साधु को एक अतिशय सुन्दर स्त्री से आहार लेते समय अनासक्त देखकर आत्म-ग्लानि से भर जाता है। उसकी विरक्ति इतनी चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाती है कि उसे नृत्य करते हुए ही कैवल्य प्राप्त हो जाता है । " माता धारणी अपने पुत्र जम्बू को सांसारिक भोग-विलास के प्रति मोहित करने की चेष्टा करती है, परन्तु जम्बू वैराग्य के चरम शिखर पर पहुँच चुका था । उसने जो उत्तर दिये, उन्होंने उसके माता, पिता, पत्नियों आदि को भी विरक्त कर दिया । इसी तरह मुमुक्षु थावच्चापुत्र और उसकी माता के मध्य जो विस्तृत वार्त्तालाप हुआ, उसकी प्रत्येक पंक्ति शान्तरस की पराकाष्ठा पर पहुँची हुई है । थावच्चापुत्र के कुछ उद्गार यहाँ अवतरित हैंअध्रुव अनित्य असासतउ, संझवा राग समानू ए । जल बुदबुद दीसई जिसा, पाकउ पीपल पानू ए ॥
अणी जलबिंदूउ, जेहवउ सुपन जंजालू ए । बीजलिनउ झषक जिसउ, नरभव तेहवउ निहालू ए ॥ कुण जाणइ पहिलउ पछइ, मरिस्य पुत्र के मायू ए । बाल मरइ बूढ़ा रहइ, ए जग उलट्यउ जायू ए ॥
१. द्रष्टव्य वही (९.५)
२. द्रष्टव्य • समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री अनाथी मुनि गीतम्
३. द्रष्टव्य - वही, श्री अरहन्त्रक मुनि गीतम् (१-९)
४. द्रष्टव्य समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री आदीश्वर ९८ पुत्र प्रतिबोध गीतम्
( १.१-२८)
५. द्रष्टव्य • वही, इलापुत्र गीतम् (१३-१६)
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६. द्रष्टव्य - वही, श्री जम्बूस्वामी गीतम् (१-१२)
७. थावच्चासुत ऋषि चौपाई (१.५.८ - ११)
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