Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur

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Page 468
________________ समयसुन्दर का विचार-पक्ष ४५३ . इसीलिए समयसुन्दर कहते हैं कि मुझे जब भी कर्तार मिलेंगे तो मैं उनसे केवल दो ही बातें पूछंगा - तूं कृपालु है अथवा तूं पापी है? यदि तुम कृपालु हो तो वियोग क्यों कराते हो? देवकुमार जैसा पुत्र देकर अधबीच में क्यों छीन लेते हो और पुरुष-रत्न को हर घड़ी क्यों तोड़ते हो? किसी को तुम छत्रपति राजा के रूप में स्थापित कर देते हो, तो किसी को रंक बना देते हो और जिस हाथ से दान दिलवाते हो, उसी हाथ को क्यों तुम दूसरों के आगे फैलाने के लिए मजबूर करते हो। जगत् की सृष्टि करते समय तो तुम उपकारी हो, किन्तु संहार करते समय भी तुम्हें खेद नहीं होता है। आह! यह कैसा असत्य-भरा सत्य है। समयसुन्दर कहते हैं कि मैंने तो एक रहस्य का पता लगा लिया है कि कर्म ही एकमात्र कर्ता है। समयसुन्दर कहते हैं कि परमेश्वर-परमेश्वर सभी कहते हैं, लेकिन वास्तव में क्या किसी ने परमेश्वर का दर्शन किया है? चलो, उसी से पूछे जिसने परमेश्वर को देखा हो। वे आगे कहते हैं कि किसको पूछे? कारण, परमेश्वर अलख, अगोचर, निराकार, निरञ्जन है। समयसुन्दर स्वयं एक प्रखर पण्डित थे और वे पण्डितों को ही ललकार कर सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि पण्डितो! बताओ, इस जगत् की सृष्टि किसने की? यदि कोई अकाट्य युक्ति जानते हो तो कहो, अन्यथा इधर-उधर की बातें छोड़कर सीधेसादे स्पष्ट रूप से 'न' का उत्तर दे दो। इस प्रकार हम देखते हैं कि जहाँ एक ओर समयसुन्दर भक्त-हृदय होकर ईश्वरवादी हो जाते हैं, वहीं दूसरी ओर तार्किक होकर निरीश्वरवाद का समर्थन करते हैं। २. भाग्य बनाम पुरुषार्थ पूर्वोपार्जित शुभाशुभ कर्म ही भाग्य है और वर्तमान में किया जाने वाला प्रयत्न पुरुषार्थ है। समयसुन्दर यद्यपि भाग्य को प्रमुखता देते हैं, किन्तु वे पुरुषार्थ की उपेक्षा नहीं करते। उनके अनुसार प्रत्येक कार्य की सिद्धि के लिए भाग्य और पुरुषार्थ - दोनों की विद्यमानता आवश्यक है। ___ भाग्य की प्रबलता बताते हुए समयसुन्दर कहते हैं कि पुरुषार्थ चाहे जितना किया जाय, लेकिन बिना भाग्य के वह फलीभूत नहीं हो सकता है। मनुष्य कार्य की सिद्धि के लिए अनेक उपाय सोचता है, परन्तु बहुत उपाय सोचने अथवा करने से भवितव्यता टल नहीं सकती। पूर्व दिशा में उदीयमान सूर्य पश्चिम दिशा में उदित हो जाए १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, करतार गीतम्, पृष्ठ ४४३-४४ २. वही, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी, पृष्ठ ५१५-१६ ३. वही, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी, पृष्ठ ५१५ ४. वही, जगसृष्टिकार परमेश्वर-पृच्छा गीतम्, पृष्ठ ४४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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