Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur

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Page 505
________________ ४९० महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व थी। उन्होंने अपने सूक्ष्मतम निरीक्षण द्वारा वस्तुओं के अंग-प्रत्यंग, आकृति, वर्ण और उसकी समीपतम एवं दूरतम परिस्थिति का परस्पर संश्लिष्ट विवरण प्रस्तुत किया है। अप्रतिहत गति से समयसुन्दर की प्रतिभा वर्णनीय विषयों को वास्तविक रूप से प्रकाशित करती चली गयी है। वर्णन-कौशल के कारण ही उनकी कृतियाँ सतत मूर्तवस्तु का दर्शन कराती हैं। प्रकृति-वर्णन, वस्तु-वर्णन आदि में उन्होंने भिन्न-भिन्न प्रकार से अपना कौशल प्रदर्शित किया है। इन वर्णनों में तात्कालिक परिस्थितियों की झलक भी प्राप्त होती है। भाषा, भाव, ध्वनि एवं बिम्ब का सुष्ठ सामंजस्य इन वर्णनों की अपनी विशेषता है। पंचम अध्याय का निष्कर्ष पंचम अध्याय है, 'समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व'। समयसुन्दर की रचनाओं का बहिरंग एवं अन्तरंग - दोनों ही उत्कृष्ट कोटि का है। काव्य-रचना में जिन साहित्यिक तत्त्वों की अपेक्षा होती है, उन सभी का समन्वय उसमें हुआ है। उनकी रचनाएँ नियमों से आबद्ध अवश्य हैं, किन्तु अपने संकेतों में वे निस्सीम और अनन्त का स्पर्श करती हैं। समयसुन्दर मुख्यतः रसरसिक कवि थे। यों तो उनकी रचनाओं का प्रत्येक वाक्य रससिक्त है, परन्तु कतिपय वाक्यों का विन्यास इस प्रकार हुआ है कि वे 'वाक्यं रसात्मकं काव्यम्' की सम्पुष्टि करते हुए प्रतीत होते हैं। भावाभिव्यंजना में वे बड़े पटु थे। उनके साहित्य में विविध रसों का यथास्थान परिपाक हुआ है। यद्यपि समयसुन्दर की प्रत्येक रचना का समापन वैराग्य एवं आत्म-शान्ति का क्रोड़ में होता है, किन्तु उन्होंने अन्य रसों का भी आह्लाददायक परिपाक किया है। समयसुन्दर की यह विलक्षण कवित्व शक्ति ही है कि उन्होंने इस प्रकार से रस की निष्पत्ति की है कि वह पाठकों को क्रमशः एक-एक रस का आस्वादन कराते हुए अन्त में शान्त-रस में डुबो देती है। इस प्रकार भोग से योग की ओर ले जाने में उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। __ कविप्रवर समयसुन्दर अलंकार-शास्त्र के वेत्ता थे। उन्होंने वाग्भट लिखित 'वाग्भटालंकार' पर व्याख्या-ग्रन्थ भी लिखा था। उनकी रचनाओं का विभिन्न अलंकारों के प्रयोग द्वारा अलंकरण हुआ है। अनुप्रास, श्लेष, यमक, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का अधिक प्रयोग हुआ है। अधिकतर रचनाओं में सचेष्ट प्रयास न होते हुए भी विभिन्न अलंकारों के सुन्दर उदाहरण प्राप्त हो जाते हैं। समयसुन्दर ने अलंकार एंव अलंकार्य में ऐसा सामंजस्य स्थापित किया है कि उनके काव्यों की प्राकृतिक रमणीयता उच्छलित हुई है। समयसुन्दर की रचनाओं में माधुर्य, ओज और प्रसाद - तीनों गुणों का विषयानुरूप समुचित समावेश हुआ है। माधुर्य एवं प्रसाद तो उनके काव्य का वैशिष्ट्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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