Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 508
________________ महोपाध्याय समयसुन्दर के एक व्यक्तित्व में बहुविध कृतित्व के दर्शन होते हैं। शायद ही ऐसा कोई विषय हो जो उनसे अछूता रहा हो। उनकी अनुपमेय एवं अपरिमित साहित्य-साधना को देखते हुए उन्हें जैनधर्म का द्वितीय हेमचन्द्राचार्य कहा जा सकता है। शिक्षा देना, आनन्द-प्रदान करना और गूह्यतम सत्यों को उद्घाटित करना - यही उनके साहित्य-निर्माण का उदेश्य परिलक्षित होता है। उनका साहित्य केवल क्षणिक मनोरंजन का छिछला और सस्ता साधन नहीं है, वरन् समाज के स्थायी और शुभ जीवन का प्रदर्शक है। वह धार्मिक, व्यवस्थामूलक तथा नैतिक पृष्ठभूमि पर प्रतिष्ठित है। उन्होंने ऐसी-ऐसी कृतियों का निर्माण किया, जो अतुल्य हैं। भाषा, वर्णन-कौशल, साहित्यिक तत्त्व, विचार इत्यादि सभी दृष्टियों से उनका साहित्य भारतीय साहित्य के गौरव को दुगुना करता है। महाकवि तुलसीदास की टक्कर का उनके समय में यदि कोई अन्य कवि था तो वह समयसुन्दर ही थे। यथार्थतः उनके साहित्य के अध्ययन-मनन के बिना भारतीय साहित्य का इतिहास अपूर्ण रहेगा। प्रस्तुत ग्रन्थ है उन्हीं के प्रभावी व्यक्तित्व एवं कृतित्व का महोपाध्याय श्री चन्द्रप्रभ सागर जी द्वारा लिखित विस्तृत अनुसन्धानपरक विवेचन-विश्लेषण। •प्रकाशक श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ, जोधपुर श्री जितयशा फाउंडेशन, जयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 506 507 508