Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur

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Page 471
________________ ४५६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व हैं, लौंकागच्छवाले जिनप्रतिमा-पूजन का विरोध करते हैं तो हुँबड़ (दिगम्बर) स्त्रीमुक्ति को नहीं मानते हैं। समयसुन्दर का कथन है कि इनमें से कोई भी यदि केवली के समीप जाएगा तो उसका संशय दूर हो जाएगा और यथार्थ स्थिति जान जाएगा। खरतर, तपा, आंचलिया, पार्श्वचन्द्र, आगमिया, पूनमिया, दिगम्बर लुंका आदि चौरासी गच्छों के भी अनेक प्रकार हैं। अहंकारवश ये सभी अपने-अपने गच्छ की स्थापना करने के लिए प्रयत्नशील हैं, किन्तु समयसुन्दर इन आग्रहों के परे सत्य का दर्शन करते हैं। उनका कथन है कि भगवान ने जो कह दिया है, उसी को कहा करो तथा उसी की स्थापना करने का प्रयत्न करो। समयसुन्दर अपने गच्छानुयायियों को भी सावधान करते हैं। वे कहते हैं कि यद्यपि हमारा गच्छ सबसे बड़ा है और व्याख्यान में सबसे अधिक इसी गच्छ में उपस्थिति होती है, किन्तु इस बात का कभी भी गर्व मत करना। समय का खेल बड़ा विचित्र है। समय-समय पर हानि भी होती है। कौन जानता है कि कौन सा गच्छ प्रमाणभूत एवं जीवित रहेगा?३ गच्छनायकों के सम्बन्ध में वे लिखते हैं कि पूर्ववर्ती गच्छनायक अति महान, क्षमाशील और गम्भीर हुआ करते थे, परन्तु सम्प्रतिकालीन गच्छनायक स्वेच्छानुसार आचरण करते हैं और यदि कोई उन्हें कुछ कहता है, तो वे उस पर कोई ध्यान नहीं देते। वस्तुत: उन पर कोई हटक नहीं है। उनके अनुसार वे गच्छनायक तरकश में थोथे तीर के समान हैं और रात-दिन खिन्न रहते हैं। ५. वैचारिक सहिष्णुता सामान्यतया यह मान्यता है कि मिथ्यादृष्टि के द्वारा निर्मित भारत (महाभारत) तर्क-व्याकरण काव्यादि ग्रन्थों के पठन से मिथ्यात्व की प्राप्ति होती है, अतः सम्यग्दृष्टियों को इन्हें पठन नहीं करना चाहिये, किन्तु समयसुन्दर के अनुसार 'मिथ्याश्रुतस्यापिसम्यग्दृष्टि परिगृहितत्त्वेन सम्यक्श्रुतत्त्वेन भणनात्'। अर्थात् मिथ्याश्रुत को भी सम्यग्दृष्टि से गृहित करने पर वह सम्यकश्रुत ही होता है। उनका कथन है कि वर्तमान में मैंने भी न केवल अपने सिद्धान्तों या शास्त्रों पर टीका आदि लिखी है, हमारे पूर्वज जैनाचार्यों ने भी जैनदर्शन के अतिरिक्त बौद्ध, सांख्य, जैमिनीय, नैयायिक, चार्वाक आदि दर्शनों पर ग्रन्थ लिखे हैं। वास्तव में यदि हम दूसरों के व्याकरण, तर्क आदि को नहीं समझेंगे, तो हम मन्दमतिवान् लोग अपने सिद्धान्तों एवं शास्त्रों को भी सुगमता से नहीं समझ पाएंगे। जब तक हम १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी (११), पृष्ठ ५१७ २. वही, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी (१२),पृष्ठ ५१७ ३. वही, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी (१३),पृष्ठ ५१७-१८ ४. वही, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी (१४),पृष्ठ ५१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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