Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur

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Page 498
________________ उपसंहार ४८३ पूर्ववर्ती अध्यायों में महोपाध्याय समयसुन्दर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अनुशीलनात्मक अध्ययन के उपरान्त निम्नलिखित निष्कर्ष प्रस्तुत किए जा सकते हैं - प्रथम अध्याय का निष्कर्ष प्रथम अध्याय है, 'समयसुन्दर का जीवन-वृत्त'। समयसुन्दर जैन मुनि थे। वे इसी नाम से साहित्य-जगत् में विश्रुत हुए, यद्यपि समकालीन कवियों ने उनके लिए 'समयोसुरचन्द' नाम भी प्रयुक्त किया है। यह नाम या तो उनके गृहस्थ-जीवन का रहा होगा या फिर पारस्परिक आत्मीयता के कारण कवियों ने यह नाम प्रयुक्त किया होगा। समयसुन्दर का जन्म-स्थान सांचोर है, जो राजस्थान एवं गुजरात के सीमान्त पर स्थित है। समयसुन्दर की प्रथम उपलब्ध कृति 'भावशतक', जिसका रचना-काल विक्रम संवत् १६४१ है एवं अन्य साक्ष्यों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि उनका जन्म लगभग विक्रम संवत् १६१० में हुआ होगा। यद्यपि समयसुन्दर ने अपने माता-पिता का नामोल्लेख नहीं किया है, लेकिन वे उनके महान् उपकारों को स्वीकार करते थे और उनके आदर्श गुणों के प्रति उनकी पूर्ण आस्था थी। समयसुन्दर का जन्म प्राग्वाट/पोरवाल वंश में हुआ था और वे इस वंश में हुए महान् पुरुष-रत्नों में सर्वोपरि हुए। उन्हें धर्मश्री नामक आर्या ने साधना-मार्ग पर आरूढ़ किया होगा और इसीलिए वे 'धर्मश्री आर्यिका-सूनु' की संज्ञा से अभिषिक्त हुए। समयसुन्दर ने यौवनवय में प्रव्रज्या ग्रहण की थी। यदि उनका जन्मकाल विक्रम संवत् १६१० में लगभग स्वीकार करते हैं, तो उनका अभिनिष्क्रमणकाल विक्रम संवत् १६२८ से १६३० के मध्य मान सकते हैं। वे जिनचन्द्रसूरि के कर-कमलों से दीक्षित हुए और गणिसकलचन्द्र के शिष्य हुए। समयसुन्दर जैनश्वेताम्बर-परम्परा की खरतरगच्छ नामक शाखा के अनुयायी थे। उनकी गुरु-परम्परा में अनेक उद्भट साहित्यसेवी एवं युग-प्रधान आचार्य हुए, जिनमें जिनेश्वरसूरि, अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि, जिनचन्द्रसूरि आदि उल्लेखनीय हैं। महोपाध्याय समयसुन्दर इस विद्वत् परम्परा की स्वर्णमयी श्रृंखला की एक कड़ी थे। समयसुन्दर के गुरु का अल्पायु में ही निधन हो गया था। अत: वाचक महिमराज और उपाध्याय समयराज से उन्होंने विद्याध्ययन किया था। गहन आगमिक प्रशिक्षण, उच्च अभ्यास, तीक्ष्ण बुद्धि, मेधावी प्रतिभा तथा तप-संयम के पालन में दक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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