Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur

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Page 479
________________ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व समयसुन्दर ध्यान और प्राणायाम की चर्चा करते हुए कहते हैं कि ध्यान के यथेष्ट आसन में बैठकर प्राण वायु को उड्डयन-बन्ध से आबद्ध कर अर्धोन्मीलित नेत्रों की नासाग्र दृष्टि से युत होकर मन को नियन्त्रित करके अन्तरात्मा तक पैठा जा सकता है, अथवा प्राण वायु को बारह अंगुल प्रमाण बाहर निकाल कर उसे वहीं रोके रखना, इसी प्रकार प्राण वायु को भीतर रोक देना या फिर प्राण वायु का बाहर - भीतर रेचन करना प्राणायाम की ये तीन विधियाँ, जिन्हें क्रमश: पूरक, कुम्भक तथा रेचक कहा जाता है, मन को एकाग्र करने में परम सहायक हैं । समयसुन्दर का कहना है कि मनोविजय से ही आत्म-विजय सम्भव है । ૪૬૪ इस तरह यह स्पष्टतः कहा जा सकता है कि समयसुन्दर पर ध्यान के क्षेत्र में योगकुण्डलिनी उपनिषद् एवं पातंजलयोग-दर्शन से लेकर उत्तरवर्ती जैन आचार्यों का भी प्रभाव रहा है। १२. अप्रमत्त-जागरण राग-द्वेष विहीन आत्म- जागृति ही अप्रमत्त जागरण है । समयसुन्दर के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को आत्मा के प्रति सदैव जागृत रहना चाहिये। आत्म-स्वभाव अर्थात् अध्यात्म के प्रति अनुत्साहित नहीं रहना चाहिये । निद्राधीन, प्रमादी या आलसी व्यक्ति उनकी दृष्टि में सदैव अपने समय को व्यर्थ खो देता है । समयसुन्दर आत्म- जागृति हेतु उद्बोधन देते हुए कहते हैं कि जागो ! जीवन को बदलो । प्रभात हो गया है, धर्म-मार्ग पर प्रवृत्त हो जाओ। सुषुप्तावस्था में भय ही भय है । जागृत को कोई भय नहीं है । अतः आलस्य प्रमाद को त्याग देना चाहिये । २ जैसे-जैसे दिन और रात्रियाँ जाती हैं, वैसे-वैसे मनुष्य का आयुष्य घटता जाता है । मनुष्य जन्म निष्फल सिद्ध न हो, यह ध्यान में रखना चाहिये। भला, चौदह पूर्वधारी ज्ञानी व्यक्ति को भी प्रमादवशात् निगोद में जाना पड़ा, तो तुम तो अल्पज्ञानी हो । अतः तुम्हारी क्या गति होगी? जगो भाई जगो ! धर्म-सूर्य उदित हो गया है, अँधकार विनष्ट हो गया है । समयसुन्दर ने मोह-माया की निद्रा के निवारणार्थ बार-बार प्रेरणा दी है। उनका कहना है कि मनुष्य का अन्तरंग और बहिरंग – दोनों जागृत रहने चाहिये । उन्होंने लिखा है कि हे मानव! तुम विश्वस्त होकर निद्राधीन मत बनो। सर्प तुम्हारे सिरहाने ही सोया हुआ है, चोर तुम्हारे पीछे-पीछे फिर रहा है, आक्रमण कर देगा। तुम्हें इस बात से १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, अध्यात्म सज्झाय, पृष्ठ ४७७ २. (क) वही, सूता जगावण गीतम्, पृष्ठ ४२७ (ख) वही, प्रमादत्यागगीतम्, पृष्ठ ४२८ (ग) वही, प्रमादपरित्याग गीतम्, पृष्ठ ४२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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