Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur

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Page 472
________________ समयसुन्दर का विचार- पक्ष ४५७ स्वसिद्धान्त - शास्त्रों के साथ-साथ परसिद्धान्त शास्त्रों का अध्ययन नहीं करेंगे, तब तक हम प्रतिपक्ष के समक्ष वाद-विवाद या शास्त्रार्थ में स्वपक्ष का समर्थन युक्तिपूर्वक नहीं कर सकेंगे। वे पुन: पुन: इस बात को दोहराते हैं कि पुराण, रामायण, महाभारत अथवा कोई भी ग्रन्थ हो, यदि हम उनका सम्यग्दृष्टि से अध्ययन करेंगे तो वह हमारे लिए सम्यक्शास्त्र ही होगा और वह स्वसिद्धान्तवत् ही हो जाएगा। ६. सर्ववेश- मुक्तिगमन जैनधर्म में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर- ये दो प्रधान आम्नाय हैं। इनमें दिगम्बर मत मुक्ति के लिए नग्नता को अनिवार्य मानता है, क्योंकि स्त्री नग्न नहीं रह सकती, अत: उसे स्त्री-मुक्ति स्वीकार नहीं है, जबकि श्वेताम्बर मत स्त्री-मुक्ति को स्वीकार करता है। साथ ही यह भी मानता है कि गृहस्थ भी मुक्ति प्राप्त कर सकता है। इस संदर्भ में समयसुन्दर समन्वयवादी हैं। उनका कहना है कि केवल श्वेताम्बर ही मुक्त हो सकते हैं अथवा दिगम्बर ही मुक्त हो सकते हैं, यह बात नहीं है। हर कोई - लिंग वाला मुक्ति प्राप्त कर सकता है । जो भी निरञ्जन का ध्यान लगायेगा, योगमार्ग को अपनायेगा, वह निश्चित रूप से मुक्ति प्राप्त करेगा । शैव, श्वेताम्बर, दिगम्बर, हिन्दू, बौद्ध, मुसलमान (शेख), श्रमण, ब्राह्मण, तापस, सन्यासी, श्रृंगीनादी, नग्न- जटाधर, करपात्री, भस्मभूषित योगी, स्त्री, पुरुष, नपुंसक आदि सभी मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं । ३ ७. स्त्री-मुक्ति स्त्री मोक्षपद को प्राप्त नहीं कर सकती (दिगम्बर मत ) - यह बात समयसुन्दर को मान्य नहीं है। उनका कहना है कि जैनधर्म में मोक्षपद प्राप्त करने के लिए नर अथवा नारी का कोई विभाजन नहीं किया गया है। जो लोग स्त्री के मुक्तिगमन का निषेध करते हैं, उनके पास भी इस बात का कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है, जिसके आधार पर वे सिद्ध कर सकें कि स्त्री मुक्तिगमन नहीं कर सकती। समयसुन्दर के अनुसार तो जोरत्नत्रय - सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र की सम्यक् रूप से साधना करता है, वह मोक्षपद को निश्चित रूप से प्राप्त करेगा, फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष । ८. गुरु समयसुन्दर ने ज्ञान, दर्शन और चारित्र का रूप त्रिविध साधनामार्ग पर आरूढ़ आदर्श पुरुषों के लिए गुरु शब्द का प्रयोग किया है। उनके अनुसार गुरु महान् होते हैं । १. विशेषशतक (१८) २. द्रष्टव्य - जैनधर्मसार, पृष्ठ १७ ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, सर्वभेषमुक्तिगमन गीतम्, पृष्ठ ४३९-४० ४. विशेषशतक (७६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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