Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur

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Page 467
________________ ४५२ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व का विरोधक भी है। समयसुन्दर व्यवहारिक तौर पर ईश्वरवाद के विरोधक नहीं थे। अपने भक्तिपरक गीतों में उन्होंने परमेश्वर को सर्वशक्तिमान् तथा संसार-सागर से तारक बताया है। जिस तरह तुलसीदास आदि के भगवान् सब-कुछ कर सकते हैं, वैसे ही समयसुन्दर के भगवान् भी सब-कुछ करने में समर्थ हैं। वे पापी से पापी और घोर अपराधी को भी अनन्त सुख प्रदान कर सकते हैं, उसका उद्धार कर सकते हैं। ___ एक गीत में समयसुन्दर ने परमेश्वर को एक भी माना है। उनके मतानुसार वही एक लोगों में परम्परा-भेद से अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। बाबा आदम, अनादि, परब्रह्म, पुरुषोत्तम, ईश्वर, देव, परमेश्वर, राम, साई, गोसाई, बिल्ला इल्ला, यति, योगी, भुक्तभोगी, निराकार, साकार, निरंजन, दुखभंजन, अलक्ष, एकरूपी, घट-घटभेदी, अन्तर्यामी, जगद्व्यापी, सहस्रनामी, अरिहन्त आदि सब उसी परम परमात्मा के नाम हैं या विशेषण हैं। जबकि एक अन्य रचना में समयसुन्दर अपने परमात्मा के स्वरूप का वर्णन करने में स्वयं को समर्थ न पाकर कहते हैं कि परमेश्वर के स्वरूप का निरूपण करना ठीक वैसा ही कठिन है, जैसे आकाश में पक्षी के पंखों के चिह्न को खोजना, जल में मछली की गति के चिह्न को खोजना, गंगा की बालू के कणों को गिनना, मस्तक पर मेरु को वहन करना। जो व्यक्ति कषाय-मुक्त, तपयुक्त और योग-ध्यान की ज्योति से ज्योतित है, वही उन्हें पा सकता है।३। समयसुन्दर के गीतों से यहाँ हम एक पद्य उद्धृत करते हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि यद्यपि समयसुन्दर स्वयं ईश्वरवादिता से प्रभावित थे, लेकिन उनका ईश्वर वह नहीं था जो लोग मानते हैं, वह तो वीतरागी और निस्पृह था - पणि मुझ नइ संभारज्यो, तुम्ह सेती हो घणी जाणपिछाण। तुमे नीरागी निस्प्रीही, पणि म्हारइ तो तुमे जीवन प्राण ॥ समयसुन्दर ने अपने औपदेशिक गीतों में निरीश्वरवाद का समर्थन तो किया ही है, साथ ही साथ ईश्वरवाद का विरोध भी किया है तथा ईश्वरवादियों के प्रति व्यंग्य भी कसे हैं। ईश्वर सृष्टि का स्रष्टा है - यह मानने से वे सर्वथा मुकर जाते हैं। भला, यदि मनुष्य का नियामक ईश्वर को मान लिया जाये, तो बिचारा मनुष्य नितांत असहाय, स्वतन्त्र रूप से संकल्प और पुरुषार्थ करने में असमर्थ और ईश्वरीय हाथों का एक उपकरण मात्र ही होगा। ऐसी दशा में वैयक्तिक विकास और मुक्ति भी स्वाधीन न होकर पराधीन हो जाएगी। १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री महावीरजिन विज्ञप्तिस्तवनम्, पृष्ठ २०३ २. वही, श्री परमेश्वर भेद गीतम्, पृष्ठ ४४४-४५ ३. वही, परमेश्वर-स्वरूप दुर्लभ गीतम् ४४५-४६ ४. वही, विहरमान वीसी स्तवनाः, अजितवीर्य जिन गीतम्, पृष्ठ ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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